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70. 7. 1]
महाका-परफयंत-विरइया महापुराणु
खयरेण कण्ण इच्छ्यिजएण मंदोयरि' तहु दिण्णी मएण । नामिनि काम पुणयरिमाणु सहं कतइ णह्यलि विहरमाणु ।। रययायलि अलयावइहि धीय । विज्जासाहणि संजमविणीय ! जोइवि मणिवइ' झाणाणुलग्ग' मइ रायहु मयणवसेण भग्ग । पारद्ध विग्घु परिगलियतुट्टि उववाससोसकिसकायलट्ठि।' बारहसंवच्छरपीडियंगि कुद्धी कुमारि णं खयभुयंगि। णासिउ बीयबखरलौणु झाणु इहु खगवइ चिंधे जाउहाणु । महु बप्पु होड़ मई रण्णि हरउ आयामि जम्मि महं कज्जि मरउ'। णिक्किउ विरत्तु विवरीयचित्तु जाणिवि रोसंगिउ रत्तणेत्त । गउ दहमुहु खेयरि मरिवि कालि थिय मंदोयरिगल्भतरालि । घत्ता-उप्पण्णी धीय सलक्षणिय कंपावियकेलासह ।।
णं लंकाणयरिहि जलणसिह णाई भवित्ति दसासहु ।।6।।
दिणि पडिउ जलिउ उक्काणिहाउ
अप्पंपरि जायउ परणिहाउ ।
जय की इच्छा करने वाले उस विद्याधर मय के द्वारा रावण को अपनी कन्या दे दी गई। सुन्दर पुष्पक विमान में चढ़कर अपनी कान्ता के साथ वह आकाश में विहार कर रहा था। विद्या की साधना के कारण संयम से विनीत और रचित चूड़ा पाशवाली अलकापुरी के राजा की कन्या मणिवती को ध्यान में लीन देखकर राजा की मति काम से भग्न हो उठी। उसने विघ्न प्रारम्भ किया। जिसकी तुष्टि नष्ट हो चुकी है, तथा उपवास के कारण जिसकी दुबली पतली देह रूपी सृष्टि सूख चुकी है ऐसी बारह वर्षों से अपने शरीर को पीड़ा पहुँचाने वाली वह विद्याधर कुमारी प्रलयकाल की नागिन के समान फुफकार उठी। बीजाक्षरों में लगा हुआ उसका ध्यान नष्ट हो गया। उसने कहा : यह विद्याधर जो चिह्न से राक्षस है, मेरा बाप होकर मुझे जंगल में हरे और इस प्रकार आगामी जन्म में मेरे कारण मृत्यु को प्राप्त हो। उसे निष्क्रिय, विरक्त, और विपरीत चित्त जानकर क्रुद्ध और लाल-लाल आँखों वाला रावण चला गया और विद्याधरी भी मरकर मंदोदरी के गर्भ में स्थित हो गई।
__घत्ता-वह लक्षणक्ती कन्या के रूप में उत्पन्न हुई, जो मानो कैलाश पर्वत को पाने वाले रावण की भवितव्यता और लंका नगरी के लिए अग्नि की ज्वाला थी।
दिन में तारों का समूह जल कर गिर पड़ा। अपने आप हाहाकार शब्द होने लगा। धरती
(6) 1. मंदोपरि । 2. A दिलीय। 3. A महिवद । 4. Pमाणेणुलग्ग। 5. A "कायजति । 6. खए मुगि। 7. A हह । 8.A मरइ । 9. P रोसें इंगिलं रत्तु गेत्तु ।