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महाकवि पुष्परन्त विरचित महापुराण
[70. 11. 10 पत्ता–जहिं दीसइ तहि जि सुहावणिय सीय काई वण्णिज्जइ ॥ 10 रक्खेवि जण्णु जणयहु तणउ रामें धुवु परिणिज्जइ ||1||
12 ता कुलजयलच्छिसुहावहेण पेसिय णियतणुरुह दस रहेण । बलणाहें समचं महाबलेण परिवारिय चउरंगें बलेण । गय' ससुरणयरु सुर सणर तसिय । चलवलिय मयर मयरहरल्हसिय। भड रह करि तुरिय' तुरंग चलिय दसदसिवह एक्कहिं णाई मिलिय। घर आयह मामें कुसलु कयउ प्रंगणि" जयमंगलु तूरु हयउ। गय कइवय दियह मणोरहेहि हा पहु वेहाविउ पसुवहेहिं। चलपंचवण्णधयधुवमाणु मंडउ णिहित्त जोयणपमाणु । दिज्जइ दीणहूं आहारदाणु घिप्पइ कंपतहं मृगह प्राणु । खज्जइ मासु वि किज्जइ विहाणु महुं मिट्ठलं पिज्जइ सोमपाणु। इय णिबत्तिज कउ रित्तिएहि । भणु को ण वि खद्धउ सोत्तिएहि। 10 हिसाबमावासवे
अण्णहि वासरि जयजयरवेण ।
पत्ता-इस प्रकार वह जहाँ दिखाई देती है, वहीं सुहावनी है, उसका वर्णन किस प्रकार किया जाए। जनक के यज्ञ की रक्षा करते हुए, राम की रक्षा करते हुए, उसका परिणय किया जाएगा।
(12) तब कुल लक्ष्मी से सुन्दर दशरथ ने अपने पुत्रों को भेज दिया। सेनापति महाबल के साथ चतुरंग सेना से घिरे हुए वे ससुर के नगर गए। मनुष्यों सहित देवता त्रस्त हो उठे । समुद्र से च्युत मगर चंचल हो उठे। योद्धा, रथ, हाथी, घोड़े चल पड़े मानो दसों दिशा-पथ एक साथ मिल गए हों। घर पर आए हुए उनका (राम, लक्ष्मण) का ससुर ने अभिवादन किया। प्रांगण में जय मंगल और तूर्य बजा दिये गए। इस प्रकार कुछ दिन बीत गए। लेकिन अफसोस है कि राजा पशु वधों से प्रवंचित हुआ। उसने चंचल पचरंगे ध्वजों से आन्दोलित एक योजन प्रमाण का मंडल बनाया, दीनों को आहार दान दिया जाने लगा। कौपते हुए पशुओं के प्राण आहूत किए जाते हैं । इस प्रकार मांस खाया जाता है, और विधान किया जाता है। पुरोहितों ने इस प्रकार के यज्ञ का विधान किया है, बताइए ब्राह्मणों के द्वारा कौन नहीं ठगा गया कि वे जो हिंसा और पाप के आश्रय का धर्म बताते हैं। दूसरे दिन जय-जय शब्द के साथ।
10. A परणिज्ज।
(12) 1. ATN 2. A सुरसैष्ण तसिय; Pसुर सजर तसिय। 3. AP करि रह । 4.A तुरय । 5. आयट । 6 AP पंगणि। 1. A मंगलतूस; P मंगलतरु। 8. AP मणोहरेहि। 9. AP मिगहं पाणु 10.Afणवित्ति।