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महाकनि पुष्पदन्त विवित महापुराण
काणीणहुं दीणहुं बेसियहुं दिष्णई दाणई लोयहुं ॥ तहि समइ पराइज' महुसमउ णं विवाहु अवलोयहुं 111311
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घता
अहिणवसाहार मन तपत्त बिंतु ।
[70. 13. 14
अंकुरफुरंतु ' पल्लवचलंतु । दावंतु णीलसेवालतीरु' । अवरु वि दीहत्तणु वासरासु । मोक्ख दुग्गुणभोक्ख सिद्धि ।
सोहइ वसंतु जग पइसरंतु कार व धारहि सचंतु णिधि दसद्विपट्ठवंतु सारंतु सुवाविहि वारिचीरु खरकिरणपयाउ' वि णेलरासु परंतु असोय पत्तरिद्धि बउलहु वउ सुच्छायचं" करंतु तिलयहु दलतिलयविलासु देतु वल्लकामुयवम्मई हणंतु माणिणिहि माणगिरि जज्जरंतु उत्तंग दियह गमंतु" । मंदारकुसुमरयमहमहंतु " धत्ता --- कानीन, दीन, देशी लोगों को दान दिया गया । ठीक उसी समय बसंत का समय आ पहुँचा । मानो उस विवाह को देखने के लिए ही ऐसा हो रहा है ।
रमणा हिला सविन्भ भतृ ।
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जग में प्रवेश करता हुआ बसंत शोभित होता है. अभिनव सहकार वृक्षों से महकता हुआ कलाली की तरह मधु धाराओं से बहता हुआ, हेमन्त की प्रभुता को नष्ट करता हुआ, अपने चिह्न को दसों दिशाओं में भेजता हुआ, नवाकुरों से चमकता हुआ, पल्लवों से हिलता हुआ, वापिकाओं के जल रूपी चीर को हटाता हुआ, उनके नीले शैवालों के तीरों को दिखाता हुआ, सूर्य के तीक्ष्ण किरण प्रताप को और दिनों के लम्बेपन को दिखाता हुआ, अशोक के पत्तों की वृद्धि करता हुआ, मोक्ष (अर्जुन) वृक्ष की दुष्ट फागुन से मुक्ति की सिद्धि को प्रगट करता हुआ, मौलश्री के शरीर
कांतिमय बनाता हुआ, वन लक्ष्मी के मोस रूपी आंसुओं को पोंछता हुआ, तिलक वृक्षों के पत्तों को तिलक की शोभा देता हुआ, लता रूपी कामिनियों में रस उत्पन्न करता हुआ, प्रियों के कामुक आहत करता हुआ, कनेर के फूलों की धूल को धूसरित करता हुआ, मानिनियों के मान रूपी पहाड़ों को जर्जर करता हुआ, घूमते हुए भ्रमरों की आवलि से गुनगुन करता हुआ, उत्तम वृक्ष विशेषों पर दिनों को बिताता हुआ, मंदार कुसुमों की धूल से महकता हुआ, रमण की अभिलाषा के विलास को उत्पन्न करता हुआ, वसंत आ पहुँचा ।
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चिछह ओसासुय' हरंतु । वेल्लीकामिणियहं रसु जणंतु । कणयारफुल्लरय वूसरंतु' । हिंडिरमसलावलिगुमुगुमंतु ।
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6. AP पराइयज ।
(14) 1. A फुरंत 2 A "लसंतु । 3- AP °सेवालणीरु । 4. AP पाउ दिनेसरासु । 5. A सच्छायउ । 6. AP ओसंसुप 7. AP कणियार । 8. AP उत्तुंगमड्डि । 9 AP add after this: मज्जंतपक्खिकुलचुमुचुमंतु K writes it but strikes it off. 10. AP read this line as: रमणा हिमाल विब्भम भमंतु (A: रमणीहि विलासविन्भमि भमंतु ), मायंदकुसुमर महमहंतु ।