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महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण
धत्ता
-- कुलधवलु धुरंधरु दहह्वयणु जायज मायहि जइहुं || मंदरगिरिदुग्गु पुरंदरिण महुं भावइ' किउ तइयं || 4 ||
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पडिमल्लु व गज्जियसायराहं । *मणमत्थइ सूलु व अरिवराहं । कामवासु तरुणीयणाहं । महिमहिहरसंचालणसमत्थु । आयंत्रण पडखकालु । दुद्देण णं मज्झष्ण सूरु । णं पलयकालु हुवहु पलित | जसु असिधारइ" धर मरइ तरइ । रिसहं जो सुम्बइ वज्जकाउ ।
णवतरणि व सुरकुमुयाय राहूं' कुसुणं दिग्गवराहं णं मत्तभमरु णंदणवणाहं पवहंतमहासरिज लगलत्थु वण्णेण गरलभसलउलकालु जाउ जुवाणु जमजोहजूरु
'विसमविसंकुरु विसविसित्त तज्जियदासि व भउ धरइ' चरइ जसु सत्तसत्तसहसाई बाउ
पत्ता - जसु भइएं' रवि णं अत्थवइ चंदु व चंदगहिल्लउ ||
फणि पुरिसरुवु परिहरिवि हुउ दीहदेहु कोडल्लउ ||5||
[70.4.10
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यत्ता - कुल में श्रेष्ठ धुरन्धर रावण जिस समय मां से उत्पन्न हुआ तो मुझे लगता है कि उस समय इन्द्र ने मंदराचल को दुर्ग बनायां ।
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देव कुसुमों के समूह के लिए नव सूर्य के समान, गरजते हुए समुद्रों के लिए प्रतिमल्ल के समान, श्रेष्ठ दिग्गजों के लिए कठिन अंकुश के समान, बड़े-बड़े शत्रुओं के मन और मस्तक पर शूल के समान, नंदनवनों के लिए मतवाले भ्रमर के समान, तरुणी जनों के लिए काम वास के समान वह रावण था । जिसने बड़ी-बड़ी नदियों के जल को छेड़ा है, जो पृथ्वी के बड़े-बड़े पहाड़ों
संचालन में श्र ेष्ठ हैं, जो रंग में विष और भ्रमरसमूह के समान काला है, लाल-लाल आँखों वाला और दुश्मन के लिए काल वह रावण युवक हो गया। यम समूह को पीड़ित करने वाला वह इस प्रकार दूरदर्शनीय था मानो मध्याह्न का सूर्य हो । मानो विष से विषावल विषय विष का अंकुर हो । मानो प्रलयकाल हो या अग्नि प्रदीप्त हो उठी हो। जिसके कारण धरती डाँटी गईं दासी के समान डरती हुई चलती है और जिसकी तलवार की धार में वह मरती और तिरती है, जिसकी सतत्तर हजार वर्ष आयु है, ऐसा वह वजू शरीरवाला समझा जाता है ।
धत्ता - जिसके भय के कारण रवि अस्त नहीं होता और चन्द्रमा को राहु लग गया है, और फणि भी अपने पुरुष रूप को छोड़कर एक लम्बी देह वाला खिलौना जिसके लिए बन गया है ।
5. A भावहि ।
(5) 1.A कुमुयावराहं । 2, AP मणि मत्यय । 3. AP कामबाणु। 4. A णं सर्विसु विसंकुह विप;ि PT णं समविसमं कुरु; K records a p; समविसमंकुर । 5. P कर डर 1 6P ° धारहि । 7. AP जसु रवि णं भइयए अत्यमद्द ।