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महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण पत्ता--तं णिसुणिवि करुणेण तेण मुणिदें बुत्तउं ।।।
" होइ अहिंसइ धम्मु हिंसइ पाउ णिरुत्तउं॥30॥
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पहु' जंपइ पच्चउ दक्खवहि __ अप्पाणउ कि मुहिइ खवहि । रिसि भासइणयलरंगणडि तुह सत्तमि दिणि णिवडिहाइ तडि । णिवडेसहि परइ म भेति करि कि सग्गु' जति पसु खंत हरि । तं राएं रइयणरावयहु
मलेप्पिणु गाविवर. पावहः । तेण वि बोल्लिउ मलपोट्टलउ किं जाणइ सवणउं विट्टलउं। असुरिंदें दरिसिय देवि णहि बिउणारउ लग्गउ पुणु वि महि । सो असणिणिहाएं घाइयज वालुयपहमहि संप्राइयउ। भणु पावें को धण मारियउ रिउणा जाइवि पच्चारियउ। जंपिंगलु हर पई दूसियउ जणियकर कण्णइ भूसियउ। जं वरलक्खणु महुँ कयउ छलु भुजहि एवहिं सहु तणउं फलु । पत्ता--पुणु असुरें णहमगि मायारूवें हरिसियई॥
सा सुलस वि सो सयरु बिण्णि वि मंतिहिं दरिसियई ॥3111 पत्ता-यह सुनकर उस महामुनि ने करुणापूर्वक कहा कि अहिंसा से धर्म होता है। हिंसा से निश्चय ही पाप होता है।
(31) तब राजा कहता है कि आप इस बात को प्रदर्शित करके बताइये। आप अपने को व्यर्थ ही क्यों खपाते हैं । मुनि कहते हैं कि आकाश के रंगमंच पर नृत्य करनेवाली बिजली सातवें दिन तुम्हारे ऊपर गिरेगी। तुम नरक में जाओगे इसमें भ्रांति मत करो । क्या पशुओं को खाने बाला शेर स्वर्ग में जाता है? तब राजा ने जिसने पशुओं के लिए आपत्तियों की रचना की है ऐसे प्रवर्तक से कहा । उसने कहा कि मल की पोटली वह नीच जैन मुनि क्या जानता है ? असुरेन्द्र ने आकाश में देवी सलसा को दिखाया। तब राजा दुगुने चाव से फिर यज्ञ में लग गया। वह राजा बिजली के गिरने से मारा गया। और बालुकाप्रभ नरक में पहुंचा। बताओ पाप के द्वारा कौन नहीं मारा जाता ? तब शत्रु ने जाकर उससे कहा कि जिस मुझ मधुपिंगल को दूषण लगाया था कि यह पीला है। और जो कन्या के द्वारा अपना हाथ भूषित किया था और जो तुमने मेरे साथ वर के लक्षणों वाला छल किया। इस समय तुम उसका फल भोगो।
घत्ता--फिर उस असुर ने आकाश मार्ग में माया रूप से हंसते हुए उस सुलसा को, उस सगर के दोनों मंत्रियों के साथ दिखाया।
(31) 1. A पइ जपइ सच्च3 । 2.Aण | 3. AP सग्गि । 4. A पसु खंति। 5. AP पन्धयहुbut T
पावयहु । 6.A महि: । महो। 7.P "णिवाएं। 8. AP संपाइयउ। 9.Pजीयवि।