________________
32
महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण
उज्झाएं पर्णाविवि पुच्छियउ तीहि विदियवरछत्त तणउ वसु पन्त्रय णारयधरणियलि जिणाणसुणिच्छ' मणि वह तं णिणिवि गुरु उब्विग्गमणु' खेतु दिए वाडियउ कंटेड महदाइणिहि
eforenvy सुणिच्छिउ । बाहासइ मुणि पणट्ठपणउ । पडिहिति दो वि कमजण्णफलि । णारउ सव्वत्यसिद्धि लहइ । आज पुरु थिउ भूमिवि भवणु । अहि दिणि लट्ठिइ ताडियउ । बसु विसइ सरणु उज्झाइणिहि ।
धत्ता - पत्थिवि रविख ताए त म तासहि बालउ ॥ पथिवपुत्त, सुसील कमलगब्भसोमालउ ||24||
धरणिहि वयर्णे व ओसरिज
महुं उप्पर एंत कुद्धमणु तं णिसुणिवि इज्जs भासियउं जय महि तयहुं जि वह 'लेंते संतें पीणभु
[69. 24. 3
25
गुरु
धरिउ ।
सिसु चवइ माइ पई भणि' एब्बहिं' दिज्जउ वरु कवणु । महंत चित्त, संतोसियउं । तुहु देज्जसु धवलबलूढभरु । विसावा कमि हिउ सुउ ।
5
10
5
उपाध्याय ने प्रणाम करके उनसे अच्छी तरह से निरीक्षित अपना भावी मार्ग पूछा। अपनी प्रतिज्ञा को भंग करते हुए मुनि उन द्विजवरों और क्षत्रियों का भविष्य बताने लगे-- राजा वसु और पवर्तक नरक की धरती में पड़ेंगे क्योंकि दोनों ने अपने यश का फल कमा लिया है। नारद जिन ज्ञान के निश्चय को अपने मन में धारण करता है, इसलिए सर्वार्थसिद्धि प्राप्त करेगा। यह सुनकर अत्यन्त उद्विग्न मन से राजा घर आया और भवन की शोभा बढ़ाकर रहने लगा। एक दिन खेलते हुए उसे (वसु को ) ब्राह्मण ने निकाल दिया। क्षीरकदम्ब ने एक और दिन उसे लाठी से पीटा। थर-थर कांपता हुआ राजा वसु शुभ करने वाली गुरु पत्नी की शरण में चला गया।
धत्ता -- उसने राजा की रक्षा की और कहा कि हे स्वामी, इस बालक को ताड़ित मत करो । राजा का यह लड़का सुशील है, और कमल के मध्य भाग की तरह कोमल है।
(25)
अपनी पत्नी के शब्दों से पति हट गया। बालक कहता है कि हे माँ, तुमने गुरु को रोक लिया । क्रुद्ध मन मेरे ऊपर आते हुए। कहो इस समय मैं कौन-सा वर दूं ? यह सुनकर आदरणीया माँ ने कहा- पुत्र, मेरा चित्त संतुष्ट हो गया । जिस समय मैं बर मागू तब उस समय मुझे देता । इस प्रकार अत्यन्त महान् और बलिष्ठ बाहु वाला राजा वसु यह व्रत लेने पर अपने पिता विश्वावसु के द्वारा कुल परम्परा में स्थापित कर लिया गया। वह अपने सहचरों और
2. A भवियपु मग्गु । 3. A णाणि विणिचद्रव; P जाणु विणिच्छउ । 4. A उब्विण्णमण । 5. AP पीडियउ । 6. A लट्टे ताडियर ।
(25) 1. AP भणु। 2. A एमहि। 3. AP वउ