________________
30
[69.219
. . . . हासी पन्त विरचित महापुराण रिसिसील एण अवलंबियउं लच्छीमुह काई ण चुंबियउं। अवरेक्के ता तहिं भासियर्ड पइ लक्खणु किं किर णिरसियउं। घत्ता-सुणि पोयणपुरि राउहोतउ एह महीसरु ।।
गउ सुलसावरयालि चारणजुयल पुरवरु ।।21।।
10
22
पिउसससुय परिणइ जाम किर ता सयरमंतिकयकवडगिर। पोत्थर विस्थारिवि दक्खविय विवरिवि बहसइसमग्धविय। सांसुयससुरहं मणु हारियउं इहु पिंगविढि णीसारियज । अप्पुण पुणु खलु वरइत्त थिउ तेणेयहु 'दुक्खणिहाणु किंउ । तं णिसुणिवि यिवइ कुछ जइ । जिणदेसिउ तवहलु अस्थि जइ। पाविठ्ठ दुडु खलु खुद्दमइ मई पुरउ हणेवउ सयरु तइ । रिसि रोसु भरंतु भरंतु मुउ असुरिंदहु वाहणु देउ हुउ। सो सद्विसहसमहिसाहिवह कि वष्णमि महिसाणीयवइ । घत्ता-जिणवरधम्मु लहेवि खमभावें परिचत्तउ॥
खणि सम्मत्त हणेवि सुरदुगइ संपत्तउ ॥22।। किया, वैसे ही एक ब्राह्मण ने कहा- "सारा ज्योतिष-शास्त्र झूठा है। इसने (मधुपिंग) मुनि का आचरण स्वीकार किया है। इसने लक्ष्मी का मुख क्यों नहीं चूमा ?" तब एक और ब्राह्मण ने कहा, "तुमने लक्षण-शास्त्र की निन्दा क्यों की?"
घत्ता-सुनो, यह पोदनपुर का राजा होता हुआ सुलसा के स्वयंवर समय में चारणयुगल नामक महानगर गया हुआ था।
___ 10
(22)
पिता की बहन की बेटी का जब वह विवाह करने लगा तो सगर के मंत्री के द्वारा विरचित कपट वाणी से युक्त पोथी खोलकर और दिखाकर अनेक शब्दों से युक्त उसकी व्याख्या कर सास-ससुर का मन ठग लिया गया और पिंग दृष्टि वाले इसे निकाल दिया गया। दुष्ट राजा सगर खुद बर बन बैठा और इस प्रकार उसने इसे दुःखों का पात्र बनाया। यह सुनकर मुनि हृदय में क्षुब्ध हो उठा और बोला कि यदि जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा कहे गए तप का कोई फल होता हो तो यह दुष्ट पापी, खोटी बुद्धि वाला सगर मेरे सामने मारा जाए। मुनि इस प्रकार क्रोध धारण कर और याद करते हुए मर गया और असुरेन्द्र का वाहन देवता हुआ। साठ हजार महिषों का अधिपति और महिषों का सेनापति उनका क्या वर्णन करूं!
घत्ता-जिनवर का धर्म धारण कर, किन्तु क्षमाभाव से रहित वह व्यक्ति एक क्षण में सम्यक दर्शन का हनन कर देव दुर्गति को प्राप्त हुआ। इसलिए क्रोध नहीं करना चाहिए ।
5. A मुणि। (22) 1.A दिक्खविय । 2. A 'णिहाउ।