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महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण
बहुबुद्धिहीरें पीलुर यम जाणिय हत्थिणिय पुच्छिवि पउ पुरि पसरिवि
घत्ता - अक्खइ मायहि गेहि णिरु ताएं संताविउ || हण पढावित कि पिणारउ चारू पढाविड 1126||
सो जाणइ अम्मि 'असिट्ठाई करिकरिणिहि पर्यावबई कहइ सहुं कतें पयडियगरहणउं पकाई वित्त ण सिक्खविउ तं सुणिवि भट्टे घोसिय मयरंदगंधमीणाहरणु सुतेरउ सुंदरि मंदु जडु इय पणिवि पिट्ठ मेस कय ए बच्छ एप्पिणु तरुहणि
कोणि पेक्ख धुवु मुणित्रि
[69. 26, 8
पयलंतपे मजल सित्तरय । अवर वि आरूढणियंबिणिय ।
गउ तक्खणि मच्छरु मणि रवि ॥
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वणि मोरिंगिय अदिट्ठाई । ता बंभणि रोसु चित्ति वहइ । विरइउ कोणीहलकलहणजं । परडिंभु जि सत्थमग्गि थविद । अलिक केणुववेसिउं । हंसहं वि खीरजलपिकरणु । णारउ पुणु ससहावेण पडु । सुय भासिय जणणं वियपय । परिविदूरु पविमुक्कजणिः । तहि आवहु बिहि वि कृष्णु" लुणिवि ।
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बुद्धि से गंभीर उसने (बसु ने) पग-चिह्नों के मार्ग से जान लिया कि हाथी में रत तथा झरते हुए प्रेम-जल से धूल पोंछती हुई एक हथिनी है और उसके ऊपर एक स्त्री बैठी हुई है। तब पर्वतक उससे पूछकर नगरी में प्रवेश कर अपने मन में ईर्ष्या धारण कर चला गया।
पत्ता -- वह अपनी मां से कहता है कि घर में मुझे पिता ने अधिक सताया है। मुझे कुछ भी नहीं पढ़ाया, नारद को खूब पढ़ाया ।
6. AP मणि मच्छरु |
( 27 ) 1. AP अट्ठाई। 2. AP कोलाहल । 2. AP परिभुक्कजणि 3. AP कृष्ण ।
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हे माँ, वह (नारद) बिना कहे बिना देखे वन में मयूर के चिह्नों को पहचान लेता है । हाथी और हथिनियों के चिह्नों को कहता है। यह सुनकर ब्राह्मणी मन में क्रुद्ध हो गई। जिसमें निंदा प्रकट है, ऐसा छोटा-मोटा झगड़ा उसने पति के साथ किया कि तुमने मेरे बच्चों को क्यों नहीं सिखाया। दूसरे के बच्चों को तुमने शास्त्र मार्ग में स्थापित कर लिया। यह सुनकर बेचारे ब्राह्मण ने कहा : बताओ भौंरों और बगुलों को पराग-गंध और मीनों का अपहरण करना किसने सिखाया ? हंसों को दूध से पानी अलग करना किसने सिखाया ? हे सुन्दरी, तेरा पुत्र मूर्ख और जड़ है। जबकि नारद स्वभाव से पंडित है। ऐसा कहकर उसने आटे के दो मेढ़े (ढेर ) बनाए और पैरों में प्रणाम करने वाले अपने पुत्र से कहा : हे बेटे, इसे ले जाकर घने जंगल में प्रवेश कर खूब दूर जहाँ एक भी आदमी न हो, जहाँ कोई भी न देख सके, इस प्रकार अपने मन में