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महाकवि पुष्परम्स विरचित महापुराण [69. 16.7 सुणि भारहि चारणजुयलि पुरि जिणधम्मपहाउज्झियविहुरि । तहिं अत्यि सुजोहणु दिण्णदिहि महएबि तासु णामें अतिहि । सुय सुलस सुलक्खण जहिं जि जहिं दीसइ' भल्लारी तहि जि तहिं । तहि णिरुवमु रूउ गुणग्धविउं णिउणें विहिणा कहि णिम्मविउं। 10 छत्ता–णडवेयालियछत्तबंदिणघोसाकरिउं॥
ताहि सपंवरु जाउ सयरु' राउ हक्कारिउ ।।16॥
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सो कोसल मेल्लिवि णीसरिउ । पहपरहरि' मज्जणि संचरिउ । दप्पणि अवलोइउ सिरपलिउ' णवचंपयतेल्ने विच्छुलिउँ । राएण वुत्त किं परिणयणु एवहिं किं छिप्पइ तरुणियणु । धेरत्तणि परिहउ पेम्मविहि विसहिज्जइ वर तवतावसिहि । ता तहु धाईइ किसोयरिइ पडिवयणु दिण्णु मंदोयरिइ। सियकेमें चंगज दीसिहइ तुह' सिरिहरि संपय पइसिहइ । ते वयणे महिवइ पुणु चलिउ गरुडद्धउ णह्यलि परिघु लिउ । दियहेहि पराइउ तं णयरु ससुरमाई संथुउ णिवसयरु' ।
जाइवि धाइइ मंदोयरिइ सई दिष्ण कण्ण तुच्छोयरिइ । असत्य विचार किया है। आप सुनिए कि भारतवर्ष के जिन धर्म के प्रभाव से दुःखों से रहित चारणयुगल नगर है, उसमें सुयोधन नाम का भाग्यशालो राजा था। उसकी अतिथि नाम की महादेवी थी। उसकी लक्षणवती सुलसा नाम की लड़की इतनी सुन्दर थी कि उसे जहाँ देखो वहीं भली दिखती थी। गुणों से युक्त उसके अनुपम रूप को चतुर विधाता ने बड़ी कठिनाई से बनाया होगा।
पत्ता-उसका वहाँ नटों-वैतालिकों, छत्रों-बंदीजनों के घोषों से आपूरित स्वयंवर रचा गया और उसमें राजा सगर को बुलाया गया।
वह (सगर) कौशल देश को छोड़कर चला। उसने स्नान करते समय उत्कृष्ट प्रभा को धारण करने वाले दर्पण के प्रतिबिम्ब में अपने सिर के सफेद बाल को देखा, जो चंपे के नये तेल से चमक रहा था। राजा ने कहा कि विवाह से क्या? इस अवस्था में तरुणी जन को क्याछया जाए! बुढ़ापे में प्रेम प्रक्रिया पराभव का कारण है, अब श्रेष्ठ तप की तपस्या को सहन करना चाहिए। सब उसकी कृशोदरी धाय मंदोदरी ने प्रत्युत्तर में कहा कि सफेद बाल से तुम अच्छे दिखोगे और तुम्हारे श्रीगृह में संपत्ति प्रवेश करेगी। उसके बचन सुनकर राजा फिर चल पड़ा, उसका गरुड़ध्वज आकाश तल में फहराने लगा। कुछ दिनों में राजा सगर उस नगर में पहुंचा और अपने ससुर के सामने बैठ गया । क्षीण कटिवालीधाय मंदोदरी ने जाकर स्वयं कान दिए (बात सुनायी)।
7. AP अवलोइय मारइ तहिं जि तहिं । 8. AP सयर राउ । (17) I. A पर पुरिवहि। 2. AP सिरि पलिउ।3. A पेम्मणिहि। 4. AP सह। 5.Aणिउ । सयक;
Pणिउ सगरु।