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महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण
[69. 14.4 सव्वत्थसिद्धि हरिरसेण गइ दिणमाणे वरिसहं सहसहइ । 'सुयसुइदिणाउ जायविजइ पुण्णइ पंचुत्तरवरिससइ। असुरिंदें विद्ध सियसरि दहरह पइट्ठ' उज्झाणयरि। परियाणिवि तणयहुं तणउं बलु हुउ मयिलि सयलु वि खलु विबलु । सहुं पुतहि जायधरारइहिं सुपरिट्ठिङ पहु णियसंतइहिं । तहिं सूई णिवसंतह णरवइहि उप्पण्णउ संतोसु व जइहि । अण्णे कहि भरह पसण्णमणु अण्णेक्कहि घरिणिहि सत्तुहणु। 10 महिवइ संपूण्णमणोरहहि
चरहिं विजणेहि परबलमहहिं । सोहइ पुत्तहि सकयायरहि णं भूमिभाउ चउसायरहि। घत्ता–मिहिलाणयरिहि ताम णामें जण उणरेसरु ।
पसुवहकम्में सग्गु चितइ जण्णहु अबसर || 14||
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मह मेरउ रक्खाइ को वि जइ वसुहासुय दिज्जइ तासु तइ । तं णिसुणिवि मंतें जंपियउं जसु णामें तिहुयणु कंपियउं । सो जासु ण जाउहाणु' गहणु जसु लहुवभाइ भडु महमणु ।
सो रक्खइ धुवु काकुत्थु तिह खेयरहिं ण हम्मइ होमु जिह । वर्षों का समय बीत गया। उनके पुत्रजन्म के दिन से लेकर विजय से युवत एक सौ पाँच वर्ष पूरे होने पर, असुरेन्द्र द्वारा राजा सगर के ध्वस्त होने पर, राजा दशरथ ने अयोध्या नगरी में प्रवेश किया। पुत्रों के बल को जानकर धरतीतल के सारे दुष्ट बलहीन हो उठे, जिनकी धरती में अनुरक्ति है ऐसे अपने पुत्रों और संतानों के साथ राजा दशरथ वहाँ अच्छी तरह रहने लगे। वहाँ सुखपूर्वक निवास करते हुए राजा के एक और पत्नी से प्रसन्न मन भरत उसी प्रकार उत्पन्न हुआ जिस प्रकार मुनि को संतोष उत्पन्न होता है। एक और पत्नी से शत्रुघ्न पैदा हुआ । पूर्ण मनोरथ वाले, परमशत्रुसेना का नाश करने वाले, स्वजनों का आदर करनेवाले उन चारों पुत्रों से राजा दशरथ इस प्रकार शोभित होता है, जिस प्रकार भूमिभाग चार समुद्रों से शोभित होता है।
पत्ता-इसी समय मिथिला नगरी में जनक नाम का राजा था। उसने सोचा पशु यज्ञ से स्वर्ग मिलता है। यज्ञ का अवसर है।
(15) जो कोई मेरे यज्ञ की रक्षा करेगा मैं उसे सीता दंगा। यह सुनकर जनक के मंत्री ने कहा : सुनो, जिसके नाम से त्रिभुवन कापता है, और जिसका रावण के द्वारा ग्रहण संभव नहीं है, योद्धा लक्ष्मण जिसका छोटा भाई है, ऐसे राम निश्चय से यज्ञ को इस प्रकार रक्षा करेंगे, जिससे विद्याधरों के द्वारा होम का नाम नहीं किया जा सकता। यह सुनकर राजा ने श्रेष्ठ दूत भेजा,
3. P दिणमागह। 4. A सहामझए; Pमहसि हए। 5. AP 'दिणाउ जाएवि लए। 6. AP
दसरहु। 7. A गुप । 8. A महिला । (15) 1.Aणाउहागु । 2.A रक्षा बंधन मे।