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68.4.2]
महाका-पुस्फयंत-निरइयउ महापुराण घत्ता–देउ मणेण जि आहरइ सुहमई पोगलाई रसरिद्धई ।।
अयणमेत्तु जीविउ थियउ पयडई जायइं कालहु चिधई॥2।।
ता तहु चरित्तु णिच्चप्फलेण धणयह भासिउ आहंडलेण। इह भरहि मगहरायगिहि दित्तु पुरि सइ राउणामें सुमित्त । जिणपायपोमजुयरेणुलित्तु
- हरिवंसकेउ कासबसुगोत्तु । अप्पडिमसत्ति णं सिद्धमंतु किंवण्णमि सोमाएविकंतु। एयहं गंदणु जिणु सोक्खहेउ होही प्राणयचुर देवदेउ । भो धणय धणय कल्लाणमित्त एयहं दोहं मि करि पुरि विचित्त । ता रइय णयरि दविणाहिवेण दिप्पं तवणिज्जे णवेण। पासायतिरहचच्चरहिं गयणयललग्गवरगोउरेहि। सरिसरणंदणवणजिणघरेहिं रक्खिज्जती णियकिकरहिं । पत्ता-तहि सँउहहु सत्तमि तलि घणथणमंडलहारबिलंबिणि।।
सुहं सोवती सयणयलि पेच्छइ सिविणय रायणियंबिणि ॥3॥
मत्तसिंधुरं सियधुरंधुरं। हरिणराययं
लच्छिकाययं। घत्ता---वह देव, मन से रस से समृद्ध सूक्ष्म युद्गलों का आहार करता । जब उसका छह माह जीवन शेष रह गया, तो उसके अंत समय के चिह्न प्रकट होने लगे। ।।2।।
(3) तब उसके चरित का कथन निश्चपल इन्द्र ने कुबेर से किया--"इस भारत के मगध देश की राजगह नगरी में सुमित्र नाम का राजा निवास करता है, जिनवर के चरण कमलों की धूल का प्रेमी, हरिवंश का ध्वज और कश्यप गोत्रीय । अप्रतिम शक्ति जो मानो सिद्धमंत्र हो। सोमदेवी के उस स्वामी का मैं क्या वर्णन करूं । प्राणत स्वर्ग से च्युत होकर वह देवदेव, इन दोनों के सूख का कारण जिनपुष होगा। हेमल्याणमित्र, धनद-पानद इन दोनों के लिए तुम पवित्र नगरी की रचना करो।" तब कुबेर ने चमकते हुए नए स्वर्ण से नगरी की रचना की। प्रासाद पंक्तियों, रथ-चौरस्तों, आकाशतल को छूने वाले श्रेष्ठ गोपुरों, नदियों, सरोवरों, नन्दनवनों और जिन मंदिरों से अपने अनुचरों से बह नगरी रक्षित थी।
धत्ता-उस नगर में प्रासाद के सातवें भाग पर, जिसके सघन स्तन मंडल पर हार झुल रहा ऐसी उस रानी ने शयनतल पर सुख से सोते हुए स्वप्नमाला देखी ॥३॥
मतवाला गज, श्वेत बैल, सिंह, लक्ष्मीमूर्ति, दृष्टि के लिए सुखद पुष्पमाला, चन्द्रविम्ब, (3) 1. AP णिच्चफलेण'। 2. A रामगिहु । 3. AP पाणयचुउ । 4. P तवणिज्ज तबेण । 5. P 'रले
लग16. P णिवकिकरेहि। 7. AP सउहहिं । (4) I.A लच्छिकामयं ।