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69.1.2]
महाका-एफपत-विसापर महापुराण
आउच्छिउ राएं पउरयणु विष्णवइ णवंतु तसंततणु' । तुह तणुरुहु परदविणई हरइ परिणियउं कलत्त, ण उव्वरइ । पइसरउ भडारा वियष्णु वणु अण्णेत्तहि जीवउ जाउ जणु । ता राएं पुरवरतलबरहु आएसु दिपणु असिवरकरहु । सिरकमलु विलुचवि णिठुरहु पेसहि तणुरुहु वश्वसपुरहु । अण्णाणु णायविद्ध सयरु खलु सो' कि बुनचइ रज्जधरु । जो दुठू कठ्ठ णिद्धम्मयरु सो खंडमि हउं अप्पणउं करु । हियउल्लङ दुक्खें सल्लियउं ता पउरें मंतिहि बोल्लियउ । घत्ता–णदणु हणहं पण जुत्तरं जइ सो मणहु ण रुच्चइ ।।
गिरिदुग्गमि कंतारि तो दूरंतरि मुच्चइ ।।6।।
पह भणइ जाउ कि तेण महुं गुणदूसणु अप्पपसंसणउं
हां दमि चिरु धम्मेण सह । तवदूसणु मिन्छादसणउं।
पुत्र ने वर के हाथ से रोती और काँपती हुई उस त्रस्त कुमारी का हरण कर लिया।
पत्ता-तब अपने हाथ में वृक्ष की डालें लेकर वणिकवर राजद्वार पर पहुंचे यह कहते हुए कि कुमार के अन्याय से नगरी की रक्षा कीजिए।
(6) पौरजन से राजा ने पूछा । कांपते हुए शरीर से नमस्कार करते हुए एक पौरजन बोला : "तुम्हारे पुत्र दूसरों के धन का अपहरण करते हैं, यहाँ तक कि विवाहित स्त्रियाँ भी उन से नहीं बचती हैं। हे आदरणीय जन (लोग), या तो विजन वन में प्रवेश करें या अन्यत्र जाकर जीवित रहें।" तब राजा ने हाथ में तलवार धारण करने वाले नगर कोतवाल को आदेश दिया कि उस निष्ठुर का सिरकमल काटकर पुत्र को यम नगर भेज दो। जो अज्ञानी न्याय का नाश करने वाला है, वह दुष्ट है, उसे राज्यधर क्यों कहा जाता है ? जो दुष्ट निंदनीय और अधर्म करने वाला है उसे मैं हाथ से नष्ट करूंगा। उसका हृदय दुःख से पीड़ित हो उठा। इस बीच नगरप्रमुख और मंत्रियों ने कहा
पत्ता-बेटे को मारना अच्छा नहीं। भले ही वह मन को अच्छा नहीं लगे। पहाड़ों से दुर्गम दूर जंगल में उसे छोड़ दिया जाए।
राजा कहता है : वह मेरा पुत्र है, इससे मुझे क्या ? मैं चिरकाल तक धर्म से आनन्दित रहूँगा। अपनी प्रशंसा करना गुण के लिए दूषण है। मिथ्यादर्शन तप का दूषण है। नीरस प्रदर्शन करना
(6) 1. AP तसंतमण । 2. A परसरणु; P पइसरह । 3. P कि सो। 4. A महिवह। 5. A ता।