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महाका-पुप्फयत-चिरइया महापुराण
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ता इंदभूइ गंभीरझुणि सेणियरायहु कह' कहइ मुणि। इह भरहि भवावहारिणिलइ फुल्लियकणयारबउलतिलइ। . मायंदगोंदगोंदलियसुइ महमयिकलमकेयारजुइ। णिपीलिउच्छरससलिलहि" संतुठ्ठपुठ्ठपंथियणिवहि ।
जाहिब मलमदेसंदर रयणडार भवणरुइहयसरइ । तहिं वसइ फ्यावइ पयधरण जें दडे जित्तउं जमकरणु । जें सत्यें जित्त सरासइ वि में बुद्धिइ' जित्तउ भेसइ वि। जें रिद्विइ जित्तउ सुरवइ वि जे भोएं जित्तउ रइवइ वि। तहु राय जयणसुहावणिय बाणावलि मयणहु तणिय । रूपेण सरिच्छी उब्वसिहि गुणवंत कंत कंति व ससिहि। सुउ चंदचूलु चंदु व उइउ सिसुमंति मित्त तेण वि' लइउ । पत्ता-सो विजयकु पसिद्ध 'णं ससिरवि गयणगणि ।।
बेपिण बि सह खेलेति बद्धणेह घरपंगणि ।।4।।
तब गंभीर स्वर वाले गौतम गणधर मुनि राजा श्रेणिक से कथा कहते हैं-भव का नाश करने वालों (सर्वज्ञों) के स्थानभूत इस भरतक्षेत्र में, जिसमें कनेर, बकुल और तिलक के वृक्ष खिले हुए हैं, जहाँ आम्र वृक्ष समूह पर तोते बोल रहे हैं, जो महकते हुए धान के खेतों से युक्त हैं । जहाँ पेरे जाते हुए गन्नों के रसों के सलिलपथ (प्याउ) हैं, जहाँ पथिक जन संतुष्ट और पुष्ट हैं. ऐसे मलरहित मलय देश के, अपने भवनों की कान्ति से शरद की शोभा का अपहरण करने वाला रत्नपुर नगर है। उसमें प्रजापति राजनिवास करता है, जिसने दण्ड के बल पर यमकरण को जीत लिया था, जिसने शास्त्र से सरस्वती को भी जीत लिया, जिसने बुद्धि से बृहस्पति को भी जीत लिया, जिसने ऋद्धि से इन्द्र को भी जीत लिया, जिसने भोग में कामदेव को भी जीत लिया, ऐसे उस राजा की नेत्रों को सुहावनी लगने वाली रानी थी, जो मानो कामदेव को बाणवलि थी। रूप में वह उर्वशी के (समान) थी। वह गुणवती कान्ता, चन्द्रमा की कान्ति के समान थी। उसका चन्द्र के समान चन्द्रचूल पुत्र उत्पन्न हुआ। उसे भी शिशु मन्त्री पुत्र मित्र के रूप में मिला।
पत्ता-आकाश में चन्द्रमा के समान वह विजय नाम से प्रसिद्ध था। 'परस्पर बद्धस्नेह वे दोनों घर के आंगन में खेलते थे।
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(4) 1. AP सई। 2.A भयावहारि। 3.A कणियार। 4. A मायंदगोच्छ” P मायंदगोंदि। 5. A केयारहए। 6. A 'उच्छु। 7. A बुदें। 8.P रूएं। 9. Poraits पसिद्ध ।