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सम्यग्दर्शन: शास्त्रीय-विवेचन कि बकरे-मुर्गे आदि मनुष्यों के खाने के लिए ही हैं, तो इसी तरह उन्हें यह भी मानना चाहिए कि तुम भी सिंह व्याघ्र आदि हिंसक पशुओं के खाने के लिए हो। मनुष्य की क्षुधा-शांति के लिए तो अन्न और शाक उपयुक्त है-मांस नहीं। किन्तु सिंह-व्याघ्रादि तो मांस-भक्षी पशु हैं, इसलिए मनुष्य का दावा झूठा है। जिनके परम आराध्य भी स्त्री के बिना नहीं रह सके, उनकी ब्रह्मचर्य की बात भी कितनी दृढ़ हो सकती है? तात्पर्य यह है कि अनेक दर्शन इस प्रथम परीक्षा में ही छंट जाते हैं। ___ अब क्रियावाद की दूसरी कसौटी पर चढ़ा कर देखिये । 'अहिंसा परमो धर्म:' कहने वाले दर्शनों में कई तो आग जलाकर धूनी तापने वाले हैं। उनकी धूनी में अग्निकाय एवं अन्य स्थावर जीवों के अतिरिक्त छोटे-बड़े अनेक जन्तु जल जाते हैं। उनका खान-पान भी निरारंभी नहीं। संचित्त अचित्त, सदोष-निर्दोष का भेद नहीं। रात्रि-भोजन करते हैं, हाथी-घोड़े पर सवारी करते हैं। यज्ञ-यागादि में कितनी हिंसा कर डालते हैं। अजैन दर्शनों में बौद्ध दर्शन विशेष अहिंसावादी कहलाता है, किन्तु उसके
आराध्य स्वयं मांसभक्षी थे। एकेन्द्रिय जीवों की यतना का पालन तो किसी भी अजैन क्रियावाद में नहीं मिलेगा। इस दूसरी कसौटी ने सभी के क्रियाकलाप की कली खोल दी। क्रियाकलाप में कौन दर्शन पूर्ण रूप से अहिंसावादी है-यह इस कसौटी से स्पष्ट हो जाता है। जो चलने, फिरने और बोलने में भी स्थावर जीवों तक की भी अहिंसा की यतना करे, वही दर्शन क्रियावाद की इस कसौटी में उत्तीर्ण हो सकता है। शेष सभी फैल हो जाते हैं।
तीसरी कसौटी तत्त्ववाद की है। ज्ञान और क्रिया में उत्तीर्ण होकर भी कोई तत्त्ववाद की कसौटी में फैल हो जाता है। जैसे
कोई दर्शन ‘अहिंसा परमो धर्म:' तो कहे, किन्तु साथ ही कहे कि संसार में केवल एक ही आत्मा है। अद्वैतवादी के समान समस्त जीवों में एक ही आत्मा माने, तो फिर हिंसा-अहिंसा का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता। कौन किसे मारे? कौन किसकी रक्षा करे? मारने वाले में भी वही और मरने वाले में भी वही। फिर अहिंसा और हिंसा का प्रयोजन ही क्या? जब सर्वत्र सभी में एक पुरुषरूप आत्मा ही (जलचन्द्रवत्) निवास करती है, तब धर्म साधना की भी क्या एवं किसलिए आवश्यकता है? __कई मत पृथ्वीकायादि स्थावरकाय में जीव ही नहीं मानते, तो इनकी अहिंसा का प्रश्न ही नहीं उठता ।इस प्रकार जिन दर्शनों को जीवों की पहचान नहीं, जो जीव का स्वरूप ही नहीं जानते, जिनके दर्शन में अनन्त स्थावर जीव आये ही नहीं, वे उनकी अहिंसा कैसे पाल सकते हैं?
जिन दर्शनों में, यज्ञों में पशुओं को होमने का विधान है, अश्वमेधादि यज्ञों का विधान है, उनका तत्त्ववाद निर्दोष कैसे हो सकता है? ___ इस प्रकार अंतिर परीक्षा में सभी अजैन दर्शन निष्फल हो जाते हैं। अब जिनेश्वरोपदिष्ट जैनदर्शन को देखिये
ज्ञानवाद में जैनदर्शन, अहिंसादि में धर्म कहता है। आगमों में सर्वत्र यही कहा है। हिंसा में धर्म भी नहीं बताया। जैनदर्शन का ज्ञानवाद परस्पर विरोधी बातें नहीं
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