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जिनवाणी-विशेषाङ्क __ अन्त में - अनन्त काल से जो ज्ञान भव-हेतु रूप होता था उस ज्ञान को एक समयमात्र में जात्यंतर करके जिसने भवनिवृत्ति रूप किया उस कल्याणमूर्ति सम्यग्दर्शन को नमस्कार।
देह छतां जेनीदशा, बर्ते देहातीत। ते ज्ञानीना चरणमा हो वंदन अगणित ॥ आत्मसिद्धि १४२
सन्दर्भ सूची श्रीमद् राजचन्द्र (ग्रंथ, प्रकाशक श्रीमद्राजचन्द्र आश्रम अगास में संकलित पत्रों, उपदेश छाया और सस्मरणपोथी पर आधारित ।
१. व्याख्यान सार पृ.७५७ ३. आभ्या. पृ.८४२ ५. उपदेश छाया ७. पत्रांक ७६ एवं ९२ ९. पत्रांक ५०० ११. पत्रांक ३२२ १३. पत्रांक ९०२ १५. पत्रांक ५६९ १७. पत्रांक ८३२ १९. पत्रांक ८३३ २१. पत्रांक १२३ २३. पत्रांक ३३४ २५. पत्रांक ५९४ २७. पत्रांक ६०९ २९. पत्रांक ६४३ ३१. पत्रांक ६५३ ३३. पत्रांक ६१३, ९५४ ३५. पत्रांक ८३७ ३७. पत्रांक ३६०
२.आभ्या.पो.८३९ ४.पत्रांक ७१५ . ६.पत्रांक १६६ ८.पत्रांक २५४ १०.पत्रांक ३१७ १२.पत्रांक ४७१ १४.पत्रांक ५०० १६.पत्रांक ५७२ १८.पत्रांक १०८ २०.अभ्यां पो पृ.८०८ २२.पत्रांक ३३१ २४.पत्रांक १३६ २६.पत्रांक ६०५ २८.पत्रांक ६९२,उप. ला.७२५,७४५ ३०.पत्रांक ६५२ ३२.पत्रांक ७००,७४१ ३४.पत्रांक १६१ ३६.पत्रांक ४६९
जारोली भवन, नीमच (मप्र)
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