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सम्यग्दर्शन: शास्त्रीय-विवेचन
२१३ सुरक्षा पद्धति से निकलते हैं। जहाँ नाभिकीय कचरा डाला जाता है वह या तो समुद्र होता है जहाँ मछलियां तो मरती ही हैं, उनका सेवन करने वाले भी केंसर से पीड़ित हो जाते हैं। यदि कचरा जमीन में भी गड़ाया जाता है तो भी उससे निकलने वाली शक्तिशाली रेडियो सक्रिय किरणें कभी भी कैंसर उत्पन्न कर सकती हैं। अन्य बीमारियों का तो कहना ही क्या? इसी प्रकार फैक्टरियों में जो कोयला और तेल विगत १००-२०० वर्षों से जलाया जाता रहा है उसके कारण पर्यावरण दूषित हो चुका है । इस प्रकार सुरक्षा का भय तथा धन को कमाने ही होड़ हमें जीने नहीं देगी। इन दो समस्याओं से निपटने हेतु विकसित देशों ने अपनी प्रणालियों के आधुनिक ज्ञान बलादि से हल प्रारंभ कर दिया है, किन्तु अज्ञान व भ्रम में फंसे विकासशील देश इस दौड़ में शामिल होकर वस्तुतः प्रजा को मौत के मुंह में जाने को मजबूर कर देंगे। वह धन फिर क्यों न धार्मिक उत्सवों या भवनों में खर्च किया जाये, हजारों लाखों प्राणियों के वध के कारण कर्म-बंध उन्हें किस रूप में लगेगा यह सिद्धान्त का गणित ही बता सकता है। वस्तुतः गणितीय सम्यक् दृष्टि से ओत-प्रोत जैन साधुओं ने विश्व में अहिंसा की तराजू हमें सौंपी है जिससे हम तौल सकते हैं कि हम क्या करें, क्या नहीं करें। अहिंसा है तो सुरक्षा के लिए अस्त्र-शस्त्रों की
आवश्यकता ही क्या? और शौंच-संतोष है तो धन की आवश्यकता ही क्या? फिर 'थोड़ी छोड़ और को धाय, ऐसा डूबे थाहं न पाय' जैसी कहावत न मानने पर हम यदि धन की होड़ में फंसे तो आज जैसे अच्छे वायुमंडल की प्राप्ति दुर्लभ हो जायेगी। ___ जैनाचार्य की गणितीय सम्यक् दृष्टि बतलाती है कि तुम जितना-जितना इस जगत् को, इसके जीवों या परमाणुओं को छोड़ते जाओगे, उतना-उतना शाश्वत, अमूल्य अनन्त ज्ञान और सुख पाते चले जाओगे। कितना? जितना गणितीय अनुपात होगा। परमाणु का स्वरूप भी गणितीय है तो मोह, राग-द्वेष का स्वरूप क्यों न गणितीय होगा। आज की बात कुछ और है। आज यदि कुछ पाना है तो सलाह मिलेगी, मंत्र, तंत्र, यंत्र की, प्रतियोगिता, प्रतिद्वंदिता की, धन को कमाने की, प्रतिशोध की, परपीड़ा पहुँचाकर धन एकत्रित करने की, और एकत्रित धन या अन्न-पान से दूसरे को वंचित करने की। देखिये, कर्म बंध का सिद्धान्त कहता है, 'लम्हे ने खता की, सदियों ने सजा पाई।' यदि समाज से एकत्रित किया धन, पल भर भी, जीवों की पीड़ाएं दूर करने में या उन्हें बोध देने के काम न आया तो वह शोषित धन कहलायेगा और उसका रखने वाला, संरक्षण करने वाला हो सकता है नरक की यातना का भागीदार बन जाये । यही सीख है उन गणितीय दृष्टि वाली महान् आत्माओं की।
यदि हम गणित न लगा सके तो सदियों की सजा के भागीदार होंगे, क्योंकि "Ignorance is no excuse in Law" कर्म फल के कानून में अज्ञान कोई बहाना बनकर नहीं रह सकता है। अतः कर्म के चक्र में पहले तो फंसना नहीं, भव्यत्व भाव
और जीवत्व भाव में लीन होना म् + इच्छा, अर्थात् मिच्छा (generator of will) से सावधान रहना, उसे दूर ही रखना। कितना अच्छा शब्द चुना था हमारे गणितीय सम्यक्दृष्टियों ने, 'मिच्छा' जो लोक में ढाई हजार वर्ष पूर्व प्रचलित था। म् अर्थात् जनक और इच्छा, वांछा ।
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