Book Title: Jinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 425
________________ ४०८...........................:: जिनवाणी-विशेषाङ्क. जाने और तुम जान भी कैसे सकते हो, क्योंकि तुम दूसरे के स्थान पर खड़े नहीं हो सकते । दूसरे की परिस्थिति का तुम्हें पता नहीं। दूसरे ने किस परिस्थिति में ऐसा दोष किया, इसका तुम्हें कुछ पता नहीं है। अगर वैसी ही ठीक परिस्थिति तुम्हारे जीवन में भी होती तो शायद तुम भी न बच सकते। __छठा अंग है स्थिरीकरण। महावीर कहते हैं कि जीवन की, सत्य की इस यात्रा में बहत बार चुकें होंगी, बहत बार पांव यहां-वहां पड़ जायेंगे, बहुत बार तुम भटक जाओगे। तो उसके कारण व्यर्थ परेशान मत होना और अपराधभाव भी मत लाना । यह स्वाभाविक है। जब भी तुम्हें स्मरण आ जाए, फिर अपने को मार्ग पर आरूढ़ कर लेना । उसका नाम है स्थिरीकरण । ___ जैसे तुमने तय किया, क्रोध न करेंगे, समझ आई कि क्रोध करना उचित नहीं बार-बार क्रोध करके कि सिवाय दुःख के कुछ भी न हुआ, देखा क्रोध करके कि अपने लिये भी नर्क बना अत: दूसरे के लिये भी नर्क बना, अत: तय किया, अब क्रोध नहीं करेंगे। ऐसी समझपूर्वक एक स्थिति बनी क्रोध न करने की। लेकिन फिर भी चूकें होंगी। किसी आवेश के क्षण में पुनः क्रोध हो जाएगा। लम्बी आदत है। जन्मों-जन्मों के संस्कार हैं, इतनी जल्दी नहीं छूट जाते। तो जब याद आ जाए, जैसे ही याद आ जाए, अगर क्रोध के मध्य में याद आ जाए, तो पुनः अपने को अक्रोध में स्थिर कर लेना। अगर गाली आधी निकल गई, तो बस आधी को पूरा भी मत करना। यह भी मत कहना कि अब पूरी तो कर दूं। बीच में ही रोक लेना। वहीं क्षमा मांग लेना। वहीं हाथ जोड़ लेना। कहना, माफ करना, क्षमा करना, भूल हो गई। वापस लौट आना। फिर स्थिर हो जाना। तुम ध्यान करने बैठते हो, स्थिरता टूट जाती है, किसी विचार के पीछे चल पड़े। कभी-कभी ऐसे विचार, जिनसे तुम्हें जाने का कोई सम्बन्ध न था-तुम ध्यान करने बैठे. एक कुत्ता भौंकने लगा, अब कुत्ते के भौंकने से तुम्हारा कोई लेना-देना न था, लेकिन कुत्ते के भौंकने से तुमको अपने मित्र के कुत्ते की याद आ गई। मित्र के कुत्ते की याद आई तो मित्र की याद आ गई। मित्र के साथ कभी दो साल पहले कोई सुन्दर दिन बिताया था पहाड़ों पर, वह याद आ गया, चल पड़े। जब याद आ जाये कि अरे, तब तत्क्षण स्थिर हो जाना। सांतवा अंग है -'वात्सल्य' । तीन शब्दों को समझ लेने पर वात्सल्य समझ में आयेगा। तीन शब्द हैं-'प्रार्थना', प्रेम, वात्सल्य। प्रार्थना होती है, जो अपने से बड़ा है-परमात्मा, उसके प्रति। मांगा उससे जा सकता है जिसके पास हमसे ज्यादा हो, अनन्त हो। लेकिन महावीर की व्यवस्था में भगवान की कोई जगह नहीं है-प्रार्थना की कोई जगह नहीं। फिर दूसरा शब्द है 'प्रेम'। प्रेम होता है सम अवस्था, सम स्थिति वाले लोगों में-एक स्त्री में, एक पुरुष में, दो मित्रों में, मां-बेटे में, भाई-भाई में। परमात्मा ऊपर है, प्रार्थी नीचे है। लेकिन प्रेमी साथ-साथ खड़े है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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