Book Title: Jinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 455
________________ Jain Education international सम्प्रदाय और सम्प्रदायवाद XxX स्व. आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा. शुक्लाम्बर, आकाशाम्बर, ज्ञानपुजारी, तेरापंथ अरु निश्चयनय के धारी । सरलभाव से अपनी शाख चलावें, पर भीतर में झगड़ा नहीं दिखावें । धर्मनीति की शिक्षा दें मिल प्यारी ॥ सद्विचार रक्षण से जनमन भावे, टकराकर अपनी नहीं शक्ति गमावे | सम्प्रदाय में दोष न तब लग जानो, वाद करण में करे न अपनी हानो । धर्म-वीर हित सम्प्रदाय की क्यारी ॥ सम्प्रदाय का वाद दोष दुःखकारी परगण की अच्छी भी लगती खारी । पर उन्नति को देख द्रोह मन लावे, स्पर्धा से अपने को नहीं उठावे । वाद यही है अशुभ अमंगलकारी ॥ धर्मप्राण तो सम्प्रदाय काया है, करे धर्म की हानि वही माया है । बिना संभाले मैल वस्त्र पर आवे, सम्प्रदाय में भी रागादिक छावे । वाद हटाये सम्प्रदाय सुखकारी ॥ पर समूह की अच्छी भी बद माने, अपने दूषण को भी गुण न माने । दृष्टि राग को छोड़ बनो गुणरागी; उन्नत कर जीवन हो जा सोभागी । साधन से लो साध्य बनो अविकारी ॥ For Personal & Private Use Only आचार्य चरितावली . (लावणी २०१-२०५) से www.jainelibrary.org

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