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सम्यग्दर्शन : विविध
४१९ जिस पर कसकर अष्ट द्रव्य की सार्थकता की जांच की जा सकती है कि क्या वह कषाय के संस्कारों को तोड़ने में सहायक होता है ? अब इस दृष्टि से विचार करें तो पूजा में आठों द्रव्यों को चढ़ाते समय अलग-अलग आठ प्रकार की भावनाएँ की जाती हैं, जैसे जल चढ़ा कर यह भावना करना कि मेरा जन्म-जरा-मरण का रोग दूर हो, चंदन से यह भावना कि मेरे भव-आताप की शांति हो, अक्षत से यह भावना कि मुझे अविनाशी पद की प्राप्ति हो। इसी प्रकार और भी भावनाएँ हैं। आठ द्रव्यों को चढ़ाने का सम्बन्ध अब निम्नानुसार आठ कर्मों की निर्जरा के साथ जोड़ दिया गया
१. जल- 'ज्ञानावरणकर्मविनाशकाय जिनेन्द्राय अनन्तज्ञानप्राप्तये जलं निर्वपामि । २. चंदन-दर्शनावरणकर्मनिवारकजिनेन्द्राय अनन्तदर्शनगुणप्राप्तये चंदनं निर्वपामि । ३. अक्षत-वेदनीयकर्मविध्वंसकजिनेन्द्राय अव्याबाधगुणलब्धये अक्षतं निर्वपामि । ४. पुष्प मोहनीयकर्मविनाशकजिनेन्द्राय सम्यक्त्वगुणप्राप्तये पुष्पं निर्वपामि । ५. नैवेद्य-आयुकर्मनिवारकजिनेन्द्राय अवगाहनगुणप्राप्तये नैवेद्यं निर्वपामि । ६. दीपं-नामकर्मनिवारकजिनेन्द्राय सूक्ष्मत्वगुणलाभाय दीपं निर्वपामि। . ७. धूपं-गोत्रकर्मप्रतिबंधकजिनेन्द्राय अगुरुलघुगुणलाभाय धूपं निर्वपामि । ८. फल-अंतरायकर्मनिवारकजिनेन्द्राय अनंतवीर्यगुणप्राप्तये फलं निर्वपामि । ९. अर्य-अष्टकर्मविनाशकाय जिनेन्द्राय अनंतज्ञानदर्शनोपलब्धये अर्घ्य निर्वपामि ।
इस वर्णन से यह भी प्रगट है कि जिनेन्द्र को जैन मान्यता के विरुद्ध हमारे आठों कर्मों का विनाशक/निवारक मानकर उनसे उन कर्मों के नाशक गुणों की प्राप्ति के लिए प्रार्थना भी की गई है। किन्तु यह सब निरर्थक है।
पूजा के समय की जाने वाली आठों भावनाएँ (पुरानी व नयी दोनों) ही कषाय के संस्कारों तो तोड़ने के लिए निरर्थक हैं तो उनके लिए द्रव्य का आलम्बन लेने का कोई प्रश्न ही नहीं पैदा हो सकता। फिर भी कहा जा सकता है कि कषाय-मुक्ति के लिए प्रेरणा लेने को भगवान के गुणों की भावना में उपयोग को लगाने के लिए साधारण लोगों के लिए अष्ट द्रव्य का आलम्बन आवश्यक है। इस दृष्टि से विचार करें तो अष्ट द्रव्य के साथ उन भावनाओं की कोई संगति भी नहीं बैठती कि उन्हें आलम्बन कहा जा सके। उदाहरण के लिए, केवल जल चढ़ाने से जन्म, जरा, रोग का नाश या अनन्तज्ञान की प्राप्ति, चन्दन चढ़ाने से भव आताप की शांति या अनन्त दर्शन गुण की प्राप्ति, चांवल चढ़ाने से अविनाशी पद या अव्याबाध गुण की प्राप्ति, पुष्प (पीले चांवल) चढ़ाने से काम विकार का नाश या सम्यक्त्व की प्राप्ति तथा नैवेद्य (खोपरे की गिरि) चढ़ाने मात्र से ही क्षुधा-रोग का नाश या आयुकर्म निवारक अवगाहन गुण की प्राप्ति कैसे हो जावेगी जबकि कषाय नाश हुए बिना ऐसा होना असंभव है। क्या पूजक जल, चन्दन आदि चढ़ा कर ही (चाहे प्रतीक के रूप में ही सही) जिनेन्द्र से अपने त्याग की तुलना में ऐसी असंभव मांगें करके अपने आपको
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