Book Title: Jinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 363
________________ ३४६ जिनवाणी-विशेषाङ्क मुद्राओं) से पुरस्कृत किया। पश्चात् अत्यन्त भक्तिभाव से वे दशों दशार्ह, शिवा, रोहिणी आदि माताओं, बलभद्र आदि भाइयों, एक करोड़ यादव कुमार एवं सोलह हजार राजाओं सहित अत्यन्त उल्लास भाव से समवसरण की ओर चल पड़े। समवसरण को देखते ही वाहनों से उतरकर राज-चिह्नों को वहीं रखकर श्रद्धापूर्वक समवसरण में प्रवेश कर यथास्थान बैठ गए। तदनन्तर प्रभु अरिष्टनेमि ने सुबोध जनभाषा में अज्ञान अधकार का नाश कर परम ज्ञान प्रकट करने वाली देशना दी। प्रभु की ज्ञान एवं विरागपूर्ण देशना सुनकर वरदत्तादि क्षत्रियों ने हजारों की संख्या में श्रमण-दीक्षा अंगीकार की। प्रभु की इस वैराग्य रूपी, ज्ञान प्रकाश जगाने वाली देशना श्रवण कर यक्षिणी आदि राजपत्रियों ने श्रमणी दीक्षा ग्रहण की। परमार्थ का बोध कराने वाली इस देशना को सुनकर दसों दशाह, उग्रसेन, बलभद्र, प्रद्युम्न आदि ने प्रभु से श्रावक धर्म स्वीकार किया और महारानी शिवादेवी, देवकी, रुक्मिणी आदि अनेक महिलाओं ने श्राविका धर्म अंगीकार किया। इस प्रकार प्रभु अरिष्टनेमि ने प्राणिमात्र के कल्याण के लिए चतुर्विध संघ की स्थापना की और भाव तीर्थंकर कहलाए ।और उन्हीं तीर्थङ्कर के शासन में उत्कृष्ट धर्म-प्रभावना करते हुए वासुदेव श्रीकृष्ण ने न केवल सम्यक्त्व प्राप्त की, अपितु तीर्थङ्कर नामकर्म का भी उपार्जन किया। ३५, अहिंसापुरी, फतहपुरा, उदयपुर (राज.) ३१३००१ कुछ तथ्य • उपशम सम्यक्त्व दो प्रकार होता है-(१) ग्रन्थिभेदजन्य तथा (२) उपशम श्रेणि में होने वाला। इनमें से ग्रन्थिभेद जन्य उपशम सम्यक्त्व अनादि मिथ्यात्वी जीव को होता है और उपशम श्रेणि वाला आठवें से ग्यारहवें गुणस्थानों में होता है। इन दोनों प्रकार के उपशम-सम्यक्त्वी को आयु का बन्ध नहीं होता है। उपशमश्रेणीगत गुणस्थानों में तो आयुबन्ध होता ही नहीं है, क्योंकि आयुबन्ध के योग्य अध्यवसाय सातवें गुणस्थान तक ही होते हैं और इन गुणस्थानों में भी उपशम सम्यक्त्वी के ऐसे अध्यवसाय नहीं होते हैं कि उसके आयुबन्ध हो सके ।-कर्मग्रन्थ भाग ३, गाथा २० . क्षायोपशमिक सम्यक्त्व चौथे से लेकर सातवें गुणस्थान तक चार गुणस्थानों में होता है। तीनों प्रकार के दर्शनमोहनीय कर्म के क्षय से क्षायिक सम्यक्त्व होता है। यह सम्यक्त्व चौथे से लेकर चौदहवें गुणस्थान तक अर्थात् ग्यारह गुणस्थानों में पाया जाता है। कर्मग्रन्थ, भाग ३ गाथा १९ के आधार पर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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