Book Title: Jinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 401
________________ . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . ३८४ जिनवाणी-विशेषाङ्क मनष्य में त्याग की भावना का विकास हो सकता है तथा निरन्तर बढ़ती हुई आवश्यकताएं सीमित हो सकती हैं। ब्रह्मचर्य एवं अस्वाद का पालन करके वह अपनी समस्त प्रवृत्तियों, इच्छाओं तथा वासनाओं पर उचित नियन्त्रण रख सकता है। अभय के अनुसार आचरण करने से उसमें पर्याप्त आत्मबल, साहस और आत्मविश्वास उत्पन्न हो सकता है। सर्वधर्म समभाव तथा स्वदेशी का पालन करने से मानव में सहिष्णुता, उदारता, देश भक्ति, आदि उत्कृष्ट गुणों की वृद्धि हो सकती है जो उसके आत्म-विस्तार एवं आत्म परिस्कार के लिए बहुत आवश्यक है। शारीरिक श्रम द्वारा न केवल वह स्वस्थ रह सकता है वरन् उत्पादक कार्यों में भाग लेकर समाज की भी पर्याप्त सहायता कर सकता है। अस्पृश्यता निवारण द्वारा मानव को सभी मनुष्यों की समानता एवं गरिमा का महान् संदेश मिलता है, और यह उसे सबके साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है। अतः हम कह सकते हैं कि गांधीजी का नैतिक दर्शन जैन धर्म के सम्यक् दर्शन के समान है जो कि व्यक्ति के सर्वांगीण विकास एवं उत्थान में पर्याप्त योगदान करके 'जागृत मनुष्य' का निर्माण करता है, या वैसी कल्पना व भावना को साकार करता है। सम्यक् दर्शन एवं 'जागृत मनुष्य' की धारणा के सन्दर्भ में गांधीजी की 'सर्वोदय की धारणा का उल्लेख करना अति आवश्यक है। सर्वोदय का अर्थ सब लोगों की भलाई या समृद्धि है। गांधीजी का सर्वोदय में अटूट विश्वास था। पाश्चात्त्य उपयोगितावादियों के 'अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम हित' के सिद्धान्त से आगे बढकर गांधीजी ने सभी व्यक्तियों के कल्याण को आदर्श माना। समाज के प्रत्येक वर्ग का उद्धार एवं उत्थान उनका लक्ष्य था। गांधीजी के अनुसार 'जागृत मनुष्य' वह है जो सबके अभ्युदय में विश्वास रखता हो एवं अन्य व्यक्ति का शोषण नहीं करता हो। उसकी यह दृढ़ मान्यता होती है कि सभी व्यक्ति समान हैं तथा उनका उत्थान एवं उनकी समानता ही जीवन का लक्ष्य होनी चाहिए। हमारी सम्यक् दृष्टि हमें सर्वोदय के मार्ग में आगे बढ़ाती है। यही वह दृष्टि है जो हमें मानवमात्र के प्रति संवेदनशील बनाकर सभी के उत्थान के मार्ग में हमें प्रवृत्त करती है। इस दृष्टि को अपनाकर ही व्यक्ति जागृत मनुष्य के भाव को साकार करता है। सर्वोदय का प्रयोग जैनाचार्य समन्तभद्र ने सर्वोदय-तीर्थ के रूप में किया था। जिसका तात्पर्य मानव कल्याण की भावना से है। गांधीजी ने इसी मानव-कल्याण की भावना को सर्वोदय के रूप में आगे बढाया जो कि मानवता के प्रति उनका महत्त्वपूर्ण योगदान है। उनके सर्वोदय के आदर्श में बहुत से विचार एवं धारणाएं सम्मिलित हैं, जैसे ईश्वर, सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, सत्याग्रह, पवित्र साधन आदि। लगभग यही सब धारणाएं सम्यक् दर्शन की आधार हैं, जिनके द्वारा जागृत मनुष्य की प्रतिष्ठा होती है। मानव-कल्याण की भावना से ओतप्रोत जैन दर्शन एवं महात्मा गांधी दोनों ने ही अपने विचारों के द्वारा एक आध्यात्मिक समाजवाद की स्थापना के बारे में विचार किया है। जिसका लक्ष्य सर्वोदय है तथा जिसका निर्माण 'जागृत मनुष्य' के द्वारा सम्यक् दर्शन को अपनाने पर ही संभव हो सकता है। -सह आचार्य, दर्शन-विभाग जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर (राज.) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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