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जिनवाणी- विशेषाङ्क
संस्थापक मूसा के जीवन और उपदेश की पांच पुस्तकें समाविष्ट हैं । यही उनका मूल शास्त्र है। इसमें विस्तार से बताया गया है कि ईश्वर ने किस प्रकार सृष्टि की रचना की, मूसा को प्रत्यक्ष दर्शन दिये और उसे चमत्कार बताने की शक्ति दी, जिससे मूसा ने मिश्र के सम्राट फरो को डराया और यहूदियों को मिश्र की गुलामी से मुक्त कराकर बाहर निकाला और फरो की सेना को, जो उनका पीछा कर रही थी, लालसागर में डुबो दिया । ईश्वर ने यहूदियों को मूसा के द्वारा कहलाया कि उसे यहूदी जाति से कितना लगाव है । उसकी दृष्टि में यहूदी जाति दुनिया में सबसे पवित्र (holy) है और इसलिए ईश्वर द्वारा विशेष रूप से सच्चे धर्म के ट्रस्टी के रूप में चुनी हुई है । (Deuteronomy 7.6, 14.2) इसलिए उन्हें ईश्वर और अपने धर्म में पूर्ण श्रद्धा और उसके अनुरूप कठोर अनुशासन-बद्ध जीवन बनाये रखना है । वे अपने धर्म को अन्य लोगों पर थोपना नहीं चाहते । पारसी और हिन्दुओं की तरह वे धर्म-परिवर्तन को बुरा समझते हैं, क्योंकि वे अपने आपको बहुत पवित्र समझते हैं ।
यहूदी धर्म पूर्णतया एकेश्वरवादी हैं । ईश्वर केवल सृष्टि का रचयिता ही नहीं, बल्कि जगत् का शासक व न्यायाधीश है। सारी व्यवस्था उसकी इच्छा पर ही निर्भर है। ईश्वर के कुल ६१३ आदेश हैं जिनमें कुछ नैतिक धारणाओं से सम्बन्धित हैं और अन्य का सम्बन्ध यहूदियों के सामाजिक जीवन में कुछ परम्पराओं को बनाये रखने से है। उन्हें यह स्पष्ट निर्देश हैं कि वे किसी अन्य देवता की पूजा न करें; सबाथ (साप्ताहिक छुट्टी) की पवित्रता को बनाये रखें; उसे प्रार्थना का दिन रखें और वर्ष में कुछ दिन अपने त्यौहार मनाना नहीं भूलें, जैसे- पास ओवर, नया वर्ष, नई फसल, निर्णय का दिन आदि ।
अपनी आज्ञापालन करने वाले यहूदियों को ईश्वर शांति, समृद्धि व हर चीज की बहुलता देता है, जैसे - वर्षा, संतान, मवेशी, दीर्घ आयु, युद्ध में दुश्मनों पर विजय आदि । आज्ञापालन से वह बहुत खुश रहता है । ईश्वर में अटूट श्रद्धा के फलस्वरूप उन्हें जो सुख प्राप्त होने वाले हैं, उनका विस्तार से वर्णन करने के साथ-साथ वह आज्ञाओं के उल्लंघन करने वालों को दंड भी देता है । सबसे गंभीर पाप ईश्वर की सर्वोच्चता में श्रद्धा का कमजोर होना है। मूसा ने कहा कि मनुष्य केवल रोटी से ही नहीं जीता है, बल्कि ईश्वर के श्रीमुख से निकले हर शब्द में श्रद्धा रखने से जीता है । (Deu 8.3) ईश्वर कहता है “मैं ही मारता हूँ और मैं ही जीवन देता हूँ । इसलिए तुम अपनी सन्तानों को और आने वाली पीढ़ियों को इस आज्ञा से अवगत करा देना कि उसमें और उसके सभी आदेशों में श्रद्धा बनाये रखें" (Deu. 32.46)
मूसा ने यहूदियों को बता दिया कि उसके मरने के बाद वे पथभ्रष्ट हो जायेंगे जिससे ईश्वर कुपित हो जायेगा और उन्हें विपत्तियां देगा; उन्हें पृथ्वी के दूरवर्ती देशों में बिखेर देगा। जिस प्रकार एक पिता अपने पुत्र की पिटाई करता है, उसी प्रकार परम पिता भी उनकी ताड़ना करेगा। परन्तु वह ऐसा उन्हें सुधारने के लिए करता है 1 ईश्वर दयालु है । वह उन्हें पूर्णरूप से हमेशा के लिए छिटकायेगा नहीं । अन्ततः वह उन पर दया और कृपा करेगा और पृथ्वी पर दूर-दूर बिखरे हुए यहूदियों को पुनः अपने पूर्वजों की भूमि पर ले आयेगा और उनकी संख्या बढ़ायेगा और पुनः उनकी
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