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जिनवाणी-विशेषाङ्क जो भी हो ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं, जिसमें अंधविश्वास पर आधारित परंपराओं के कारण मामले उलट-पलट गये।
अन्धविश्वासों का बोलबाला केवल हमारे देश भारत में ही नहीं अपित् विश्व के अन्य देशों में भी है। इनकी गिरफ्त में शिक्षित, अशिक्षित, स्त्री-पुरुष, बूढ़े जवान, सखी दःखी सभी तरह के लोग हैं। मानसिक दर्बलता के कारण अंधविश्वासों की खेती पनपती रहती है। इनसे मुक्त होने के लिए विवेकपूर्ण सोच की आवश्यकता है। शास्त्रीय भाषा में हम इस सोच को सम्यग्दर्शन कहते हैं। सम्यग्दर्शन से सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति होती है। इनके प्रकाश में अन्धविश्वासों का अन्धेरा स्वतः काफूर हो जाता है।
-ऋषभायतन, ४४८, रोड 'सी', सरदारपुरा जोधपुर नर से नारायण
__ बलवन्तसिंह हाड़ा जो सम्यग्दर्शन करता है, वह नर, नारायण बनता है। जो त्याग तितिक्षा सहता है, वह महाव्रती कहलाता है ॥१॥
जब नहीं देह ही अपना है, यह यहीं पड़ा रह जाता है । फिर धन क्या अपना साथी है,
यह यहीं गड़ा रह जाता है ॥२॥ रे ! भ्रान्त धारणा शीघ्र तजो, तुम अधिक नहीं अनजान बनो। अपने को अब पहचान सको, तुम भक्तों से भगवान बनो ॥३॥
तुममें देखो है ज्ञान भरा, निज आत्मा को पहचानो तुम । जो बन्धन उसको बांधे हैं,
उसको हिम्मत से खोलो तुम ॥४॥ सत् में जो विश्वास करे, सदाचरण नित ज्ञान धरे। वह कर्मफलों से त्राण करे, परम मुक्ति वह प्राप्त करे ।५ ।।
सम्यग्दर्शन और ज्ञान चरित, ये रत्न त्रय निर्दोष सभी। जा सकता इनसे प्राप्त किया, दुष्प्राप्य मोक्ष का कोष अभी ॥६. ।
सी-३७ जवाहर कालोनी, झालावाड़-३२६००१ (राज.)
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