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जिनवाणी- विशेषाङ्क
सम्यक्त्व के छह आगार हैं
सम्यक्त्व के इन आगारों का उल्लेख आगम में नहीं है, किन्तु हरिभद्रसूरि विरचित सम्यक्त्व सप्तति में सम्यक्त्व के ६७ बोलों के साथ इन आगारों का उल्लेख है, यथा
आगारा अववाया छ च्चिय कीरंति भंगरक्खट्टा |
रायगणबलसुरक्कमगुरुनिग्गहवित्तिकंतारं । -गाथा ५१
१. राजाभियोग, २. गणाभियोग, ३. बलाभियोग, ४. देवाभियोग, ५. गुरु- निग्रह, ६. वृत्तिकान्तार |
(१) राजाभियोग - राजा की पराधीनता से यदि सम्यक्त्व धारी श्रावक-श्राविका को अनिच्छापूर्वक अन्य तीर्थिक देव तथा उनके माने हुए देव आदि को वन्दना-नमस्कार आदि करना पड़े तो श्रावक-श्राविका का सम्यक्त्व - व्रत भंग नहीं होता ।
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(२) गणाभियोग- गण का अर्थ है समुदाय अर्थात् बहुजन समुदाय के आग्रह से यदि सम्यक्त्वधारी श्रावक-श्राविका को अनिच्छापूर्वक अन्य तीर्थिक देव तथा उनके माने हुए देव आदि को वन्दना - नमस्कार आदि करना पड़े तो श्रावक-श्राविका का सम्यक्त्व व्रत भंग नहीं होता ।
(३) बलाभियोग - बलवान् पुरुष द्वारा विवश किये जाने पर यदि सम्यक्त्वधारी श्रावक-श्राविका अनिच्छापूर्वक अन्यतीर्थिक देव तथा उनके माने हुए देव आदि को वन्दना - नमस्कार आदि करे तो श्रावक-श्राविका का सम्यक्त्व व्रत भंग नहीं होता ।
(४) देवाभियोग–देवता द्वारा बाध्य किये जाने पर यदि सम्यक्त्वधारी श्रावक-श्राविका को अनिच्छापूर्वक अन्य तीर्थिक देव तथा उनके माने हुए देव आदि को वन्दना नमस्कार आदि यदि करना पड़े तो श्रावक-श्राविका का सम्यक्त्व व्रत भंग नहीं होता ।
(4) गुरु-निग्रह-माता-पिता आदि गुरुजन के आग्रहवश यदि सम्यक्त्वधारी श्रावक-श्राविका अनिच्छापूर्वक अन्य तीर्थिक देव तथा उनके माने हुए देव आदि को वन्दना-नमस्कार आदि करे तो श्रावक-श्राविका का सम्यक्त्व व्रत भंग नहीं होता ।
(६) वृत्तिकान्तार - 'वृत्ति' का अर्थ है आजीविका और 'कान्तार' का अर्थ है अटवी यानी जंगल, जैसे अटवीमें आजीविका प्राप्त करना कठिन होता है, उसी प्रकार क्षेत्र और काल यदि आजीविका प्राप्ति के लिए प्रतिकूल हो जायें और जीवन-निर्वाह होना कठिन हो जाए तब ऐसी दशा में यदि सम्यक्त्वधारी श्रावक-श्राविका अनिच्छापूर्वक अन्य तीर्थिक देव तथा देवादि को वन्दना - नमस्कार आदि करे तो श्रावक-श्राविका के सम्यक्त्व व्रत का अतिक्रमण नहीं होता ।
- त्रिपोलिया बाजार, जोधपुर (राज.)
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