________________
१३८
जिनवाणी-विशेषाङ्क कोटाकोटि का भाग देने पर प्राप्त एक भाग प्रमाण-काल भी अन्तर्महूर्त है, जिस काल में कि समान-समान स्थिति बन्ध होता है । २१
उक्त चार लब्धियां भव्य व अभव्य दोनों प्रकार के जीवों के होती हैं, किन्तु करणलब्धि भव्य के ही होती है तथा भव्यों में भी उस भव्य के होती है जो अन्तर्मुहूर्त बाद सम्यग्दर्शन का धनी होने वाला हो। करणलब्धि नियम से सम्यक्त्व की कारण होती है। ये चार तथा करण, इस तरह पाँचों लब्धियां उपशम सम्यक्त्व के ग्रहण में होती हैं। करण लब्धि
प्रायोग्य लब्धि के पश्चात् अभव्यों के योग्य परिणामों का उल्लंघन कर भव्य जीव क्रमशः अधः प्रवृत्तकरण, अपूर्वकरण व अनिवृत्तिकरण, ऐसे तीन करणों (परिणामों) को करता है। प्रथमोपशम सम्यक्त्व को प्राप्त होने वाले जीव के उक्त तीन प्रकार की विशुद्धियाँ होती हैं, यह कथनाभिप्राय है।
यह करण लब्धि सम्यक्त्व और चारित्र ग्रहण के समय ही होती है। २२ तीनों करणों में से प्रत्येक करण का काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है। किन्तु ऊपर से नीचे के करणों का काल संख्यातगुणा क्रम लिए हुए है। अर्थात् अनिवृत्तिकरण का काल स्तोक है। उससे संख्यातगुणा अपूर्वकरण का काल है। उससे भी संख्यातगुणा अधः प्रवृत्तकरण का काल है। अधःप्रवृत्तकरण जिस करण में विद्यमान जीव के परिणाम अपने से नीचे के समयों में स्थित जीवों के परिणामों से समानता रखते हों वह अधः प्रवृत्तकरण है। इस करण में उपरिम समय के परिणाम नीचे के समयों में भी पाये जाते हैं। अपूर्वकरण जिस करण में प्रतिसमय, पहले नहीं हुए हों ऐसे भाव होते हैं वह अपूर्वकरण है। अनिवृत्तिकरण-जिस करण में प्रतिसमय एक समान ही परिणाम होते हैं वह अनिवृत्तिकरण है। शंका जीवों के समान परिणाम कैसे हो सकते हैं? हमने तो सना है कि नाना जीवों के परिणाम मिलते ही नहीं हैं? समाधान–'नित्य ही परस्पर समान परिणाम वाले अनन्त जीव पाये जाते हैं।' क्योंकि 'संसारवर्ती जीवों के परिणाम असंख्यातलोकमात्र हैं और जीवराशि अनन्तानन्त है “जो जीवनि के परिणाम मिले नाहीं तो असंख्यातलोकमात्र परिणाम कैसे सिद्ध होई ? और कहाँ सूं आवै? यातै अनन्त जीवनिके परिणाम परस्पर मिले हैं, तब असंख्यातलोकमात्र परिणाम सिद्ध होई,” ऐसा भूधरदास जी ने कहा है। २५ स्पष्टीकरण-अपूर्वकरण में विवक्षित जीव के परिणाम अपने से पूर्व के जीवों के परिणामों से साम्य नहीं रखते। हाँ, समसमयस्थित जीवों के परिणामों में समानता या असमानता दोनों सम्भव होती हैं। क्योंकि हर समय असंख्यातलोकप्रमाण परिणाम सम्भव होते हैं, तथा वे सब के सब अन्य समय के परिणामों के सदृश नहीं होते
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org