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सम्यक्त्व-प्रकटीकरण भावनाएं
अपनी आत्मा अनादिकाल से सम्यक्त्व के अभाव में अनंत जन्म-मरण के दुःख भोग रही है। जिस प्रकार सर्योदय होते ही सब जगह से अंधकार नष्ट हो जाता है उसी प्रकार सम्यक्त्व गुण प्रकट होते ही सब प्रकार के दुःख और दोष नष्ट हो जाते
हैं।
ज्ञानी मनुष्य सादा भोजन रोटी, छाछ कढी आदि में ही सुख मानता है पर अज्ञानी या विलासी मनुष्य अनेक प्रकार के भोजन मिलने पर भी एकाध वस्तु न मिलने से क्रोध, अरुचि और दुःख का अनुभव करता है। इसी प्रकार सम्यक्त्वी जीवनरक में रहते हुए भी अपने पुराने किये हुए कर्मों का नाश होते ही स्वयं शुद्ध होता है। शरीर पर मोह रखने से दुःख होता है। आत्मा अजर, अमर एवं ज्ञान स्वरूप है, ऐसा सोचकर सम्यक्त्वी शांति प्राप्त करता है, पर मिथ्यात्वी जीव बारहवें देवलोक का महान् देवता होने पर भी मिथ्यात्व और अज्ञान के कारण अन्य देवों की विशेष सम्पत्ति देखकर ईर्ष्या, द्वेष और तृष्णा के दुःख से दुःखी रहता है। इन उदाहरणों का सारांश यही है कि समकित अर्थात् सच्ची समझ ही सुख का मूल है ।
अनेक पूर्वाचार्य समकित की भावना का आराधन करने की शिक्षा देते हुए फरमाते हैं-“हे भव्य ! तू छह महीने तक सब कामकाज कोलाहल छोड़कर शुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन कर । शब्द, रूप, गंध, रस, स्पर्श इन पांच इन्द्रिय-विषयों, क्रोध, मान, माया, लोभ इन चार कषायों और आर्त-रौद्र ध्यान (संकल्प-विकल्प) का त्याग कर। एकाग्र चित्त से समकित भावना का चिंतन कर। छह महीने में तुझे अवश्य सम्यक्त्व गुण प्राप्त होगा। आत्मदर्शन अर्थात् शुद्ध निज आत्मा का अनुभव प्राप्त होगा। यही सिद्धों के सुख का आंशिक अनुभव है। यह सम्यक्त्व गुण प्रकट होने के पश्चात् मोक्ष की प्राप्ति स्वयंसिद्ध है।"
ऐसी कल्याणकारी भावनाएँ शास्त्रकारों और पूर्वाचार्यों ने भाव दया लाकर अनंत जन्म-मरण के दुःख से बचाने के लिए भव्य जीवों के लाभार्थ फरमायी है। वे अनेक स्थानों से यहां संग्रह कर लिखी गई हैं, इनका पढ़ना, मनन करना और चिन्तन करना अपना परमहित साधने में अवश्य लाभदायक है
(१) सम्यक्त्व अर्थात् सच्ची समझ मुझे प्राप्त हो। (२) मिथ्यात्व अर्थात् उलटी समझ का नाश हो।
(३) कुदेव, कुगुरु और कुधर्म को सच्चे मानने रूप व्यवहार मिथ्यात्व का नाश हो।
(४) व्यवहार नय से (i) देव सर्वज्ञ वीतराग प्रभु (ii) गुरु-तत्त्व के ज्ञाता, सम्यग् ज्ञान, दर्शन, चारित्र के पालने वाले मुनिराज, (iii) धर्म-विवेक सहित अहिंसा तथा विषय-कषाय का त्याग। इन व्यवहार देव, गुरु और धर्म की मदद से निश्चय
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