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जिनवाणी-विशेषाङ्क आठ वर्ष से अधिक आयु वाला उत्तम संहनन का धारक, चौथे, पांचवे, छठे अथवा सातवें गुणस्थानवी मनुष्य क्षायिक समकित प्राप्त करता है। ___ चार में से किसी भी गति का पर्व बद्धाय मनुष्य अनन्तानुबन्धी चौक, मिथ्यात्व मोहनीय और मिश्र मोह का क्षय कर काल कर सकता है और समकित मोहनीय को नवीन भव (चारों गतियों) में खपा कर क्षायिक समकित प्राप्त करता है। इस प्रकार मनुष्य गति में प्रारंभ प्रक्रिया की पूर्ति चारों गति में हो सकती है।
दिगम्बर परम्परा के लब्धिसार ग्रन्थ व कषायपाहुड की गाथा ११० व १११ में वर्णन है कि क्षपणा का प्रारंभ कर्मभूमि मनुष्य तीर्थंकर, केवली अथवा श्रुतकेवली के पादमूल में ही होता है, श्वेताम्बर परम्परा में ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता है। क्षायिक समकित आने के पहले आयु कर्म नहीं बंधा हो तो वह जीव उसी भव में मोक्ष जाता है। नारकी व देवता की आयु का बंध करने वाला जीव तीसरे भव में
और युगलिक मनुष्य या युगलिक तिर्यञ्च की आयु का बंधन करने वाला जीव चौथे भव में अवश्य ही मोक्ष जाता है।
क्षयोपशम समकिती जीव अनन्तानुबन्धी चौक, मिथ्यात्व, मिश्र मोह का क्षय तो पहले ही कर चुका होता है, बाद में वह समकित मोह की क्रमशः क्षपणा करके क्षायिक समकित को प्राप्त करता है। जिसका विस्तृत विवेचन कर्मग्रन्थों से देखा जा सकता है। जिज्ञासा ७८-चौथे गुणस्थान में जिन ७ बोलों का विच्छेद होता है वह तद्भव की अपेक्षा या सदा-सदा के लिए? समाधान–नियम से उनका विच्छेद न तो तद् भव के लिए होता है न सदा-सदा के लिए । सम्यक्त्व की अवस्था (४ थे गुणस्थान या ऊपर) में इन ७ बोलों का बंध कभी नहीं हो सकता, मिथ्यात्व आदि गुणस्थान में जाने पर उस भव या अगले भवों में इन प्रकृतियों का बंध अपने-अपने कारणों के अनुरूप होता है। दूसरे कर्मग्रन्थ के बन्धाधिकार में इनका विस्तृत विवेचन मिलता है। वहां चौथे गुणस्थान में ४१ प्रकृतियों के बंध-विच्छेद का अधिकार है जिसका सम्बन्ध गुणस्थान से है, भव से नहीं।
क्षायिक समकित प्राप्त होने के पश्चात् इन प्रकृतियों का बन्ध सदा-सदा के लिए विच्छिन्न हो जाता है। जिज्ञासा ७९-यदि सम्यक्त्व अवस्था में आयुष्य बांधे तो जीव १५ भव में मोक्ष जाता ही है तो फिर चौथे गुणस्थान के फल में उत्कृष्ट १५ भव क्यों नहीं बताये? समाधान-गुणस्थान के स्तोक में सम्पूर्ण विवेचन न होकर कतिपय बातों का उल्लेख ही आ पाया है, सामान्यतः २८ द्वारों से विवेचना है, अधिक द्वारों वाला स्तोक भी मिलता है, परन्तु फिर भी बहुत सारी बातें वर्णित नहीं हो पाती।
भगवतीसूत्र, शतक ८, उद्देशक १० में जघन्य ज्ञान, जघन्यदर्शन और जघन्य चारित्र आराधक के १५ भव में मोक्ष जाने का अधिकार मिलता है । चौथे से सातवें
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