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जिनवाणी-विशेषाङ्क ध्यान में रखें तो हमें यह भी कहना होगा कि जिस प्रकार जैनमत में कोई जन्म से ब्राह्मण एवं क्षत्रिय नहीं होता, कर्म से होता है उसी प्रकार कोई किसी कुल विशेष में जन्म लेने मात्र से सम्यग्दृष्टि भी नहीं हो जाता। उसके लिए आत्मा की आन्तरिक विशुद्धि आवश्यक है। वस्तुस्थिति तो यह है कि अन्य परम्पराओं में भी आन्तरिक विशुद्धि को बल दिया जाता है। उदाहरणतः वैदिक-परम्परा में दूसरे जन्म की चर्चा है, जिससे व्यक्ति द्विज बनता है-'संस्कारेण द्विज उच्यते।' किन्तु दुर्भाग्य से वहां भी अनेक बार कन्धे पर यज्ञोपवीत के सूत्र डाल लेने को संस्कार मान लिया जाता है। जबकि संस्कार वस्तुतः एक मानसिक प्रक्रिया है। यज्ञोपवीत आदि उस प्रक्रिया के बाह्य लक्षण मात्र हैं।
अच्छा होगा कि जैन-परम्परा सम्यग्दर्शन की अवधारणा के माध्यम से आध्यात्मिक यात्रा में बाह्य आडम्बर को गौण बनाकर आन्तरिक रूपान्तरण पर बल दे। जैनेतर परम्पराएं भी सम्प्रदाय को रूढ़िवादिता की जकड़ से मुक्त करके चेतना की ऊोन्मुखता पर बल दें । ऐसा होने पर ही व्यक्ति पुरुषार्थ की सिद्धि कर सकेगा और अध्यात्म समाज की शुद्धि कर सकेगा। अन्ततोगत्वा यही अध्यात्म और विज्ञान का मिलन बिन्दु भी सिद्ध होगा। विज्ञान प्रकृति का विश्लेषण करेगा, अध्यात्म चेतना का विश्लेषण करेगा और दोनों मिलकर पूरे अस्तित्व की सही समझ प्रदान करेंगे।
टिप्पण १. आचारांग की इस परम्परा की छाया गीता में स्थान-स्थान पर दिखाई देती है। जहां अर्जुन को कृष्ण ने यह आश्वासन दिया है कि यदि वह स्थितप्रज्ञ भाव से युद्ध. करेगा तो पाप को प्राप्त नहीं होगा 'नैवं पापमवाप्स्यसि ।' पूरा श्लोक इस
प्रकार है
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥-गीता, २.३८ जहां तक इस श्लोक के पूर्वार्द्ध का प्रश्न है, जैन-परम्परा उससे शतप्रतिशत सहमत है
लाभालाभे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा।
समो जिंदा पसंसासु तहा माणावमाणओ । उत्तरा. १९.९१ किन्तु उत्तरार्द्ध में दिए गए युद्ध के आदेश से जैन-परम्परा सहमत नहीं है। यही बिन्दु प्रवृत्ति और निवृत्ति के परस्पर भिन्न होने का कारण बनता है।
२. इस प्रकार की उक्तियों की तुलना मिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना के उस प्रसिद्ध वक्तव्य से की जा सकती है, जिसमें उन्होंने कहा था कि इस्लाम का मानने वाला खराब से खराब आदमी भी इस्लाम न मानने वाले महात्मागांधी की अपेक्षा अच्छा है।
१, विश्वविद्यालय आवास, रेजीडेन्सी रोड जोधपुर
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