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सम्यग्दर्शन : शास्त्रीय- विवेचन
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सास्वादन सम्यक्त्व-उपशम सम्यक्त्व से गिरता हुआ जीव जब तक मिथ्यात्व को प्राप्त नहीं करता तब तक के परिणामों की स्थिति सास्वादन सम्यक्त्व है। जैसे खीर के भोजन के बाद वमन होने पर भी कुछ समय तक उसका स्वाद जीभ पर रहता है, यही स्थिति सास्वादन सम्यक्त्व की है। इसकी स्थिति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह आवलिका की मानी गई है।
क्षपोपशमिक सम्यक्त्व - मिथ्यात्व मोहनीय एवं अनंतानुबंधी क्रोधादि के क्षय तथा उपशम से और सम्यक्त्व मोहनीय के उदय से आत्मा में होने वाले परिणाम विशेष को क्षायोपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं । यह विशुद्धि ऐसी ही है जैसे जल प्रक्षालन से भी कोद्रवधान की मादक - शक्ति का कुछ अंश नष्ट हो जाता है, परन्तु कुछ अंश अवशिष्ट रहता है । उपशम सम्यक्त्व में न रसोदय होता है न प्रदेशोदय, परन्तु क्षयोपशम समकित में प्रदेशोदय होता है, रसोदय नहीं । इस सम्यक्त्व की उत्कृष्ट स्थिति ६६ सागरोपम से अधिक की मानी गई है।
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इस सम्यक्त्व में ७ प्रकृतियों के नौ भंग बनते हैं - ( १ ) चार अनंतानुबंधी क्रोधादि का क्षय हो, शेष तीन प्रकृतियों का उपशम हो (२) पाँच प्रकृतियों का क्षय हो दो का उपशम हो (३) छह प्रकृतियों का क्षय हो और एक का उपशम हो । इन तीनों को क्षयोपशम सम्यक्त्व कहते है । (४) चार प्रकृतियों का क्षय हो, दो का उपशम हो और एक का वेदन हो (५) पाँच प्रकृतियों का क्षय, एक का उपशम और एक का वेदन
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इन दोनों भंगों को क्षयोपशम वेदक- सम्यक्त्व कहा गया है । (७) छह प्रकृतियों का क्षय और एक के वेदन को क्षायिक वेदक सम्यक्त्व कहा गया है । (७) छह प्रकृतियों का उपशम हो और एक को वेदा जाय, उसे उपशम वेदक समकित कहते हैं । सातों प्रकृतियों का क्षय हो उसे क्षायिक समकित कहते हैं औपशमिक सम्यक्त्व - अनंतानुबंधी क्रोधादि सात प्रकृतियों के उपशमन अथवा अनुदय से आत्मा में उत्पन्न होने वाली तत्त्वरुचि को उपशम सम्यक्त्व कहते हैं । इस दशा में मिथ्यात्व के दलिक सत्ता में रहते हैं भले ही वे उपशांत या दबे हुए हों, परन्तु उनका सर्वथा क्षय नहीं होता है । जैसे राख से दबी हुई आग पुनः वायु आदि निमित्त पाकर उभर सकती है, इसी प्रकार सत्ता में रहा हुआ मिथ्यात्व भी निमित्त पाकर पुनः उभर सकता है । उपशम सम्यक्त्व का काल जघन्य - उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त का माना गया है 1
वेदक सम्यक्त्व - जिसमें अनन्तानुबंधी चतुष्क और मिथ्यात्व मोहनीय व मिश्रमोहनीय का क्षय या उपशम तथा सम्यक्त्व मोहनीय का अवश्य वेदन हो उसे वेदक सम्यक्त्व कहते हैं । इस वेदक सम्यक्त्व के तीन भेद होते हैं, जो इस प्रकार हैं ।
(अ) उपशम वेदक सम्यक्त्व - दर्शन सप्तक में से छह का उपशम एवं सम्यक्त्व मोहनीय का वेदन उपशम वेदक सम्यक्त्व कहलाता है 1
• (ब) क्षायिक वेदक सम्यक्त्व - दर्शन सप्तक में से छह का क्षय एवं सम्यक्त्व मोहनीय का वेदन क्षायिक वेदक सम्यक्त्व है ।
(स) क्षयोपशम वेदक सम्यक्त्व - इसके दो भेद बनते हैं - ( १ ) अनन्तानुबन्धी चतुष्क
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