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सम्यग्दर्शन : शास्त्रीय- विवेचन
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क्षायिक समकित सिर्फ मनुष्य भव में प्राप्त होती है, किन्तु क्षायिक समकित प्राप्त जीव चारों गतियों में मिलते हैं । क्षायिक समकित उसी मनुष्य को प्राप्त होती है जो संख्याता वर्ष की आयु वाला हो, जिसने या तो पहले आयु नहीं बांधी हो या नारकी, (चौथी नारकी से नीचे का नही) देवता ( १५ परमाधामी ३ किल्विषिक के अलावा) व युगलिक (३० अकर्म भूमि व थलचर तिर्यंच युगलिक) का आयु बांधा हुआ हो उपशम समकित की जघन्य - उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की तथा क्षायोपशमिक समकित की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट स्थिति छियासठ सागरोपम से अधिक की होती है । (पनवणा पद १८ कायस्थिति) उपशम व क्षायोपशमिक समकित में मिथ्यात्व की सत्ता बनी रहती है, अतः उसके उदय होने की संभावना बनी रहती है I सम्यक्त्व : मोक्ष प्रासाद की नींव
जिसने एक बार सम्यक्त्व प्राप्त कर लिया, वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त में और उत्कृष्ट देश न्यून अर्द्ध पुद्गल परावर्तन में अवश्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है। समकित के रहते हुए नारकी, तिर्यंच, भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी, स्त्रीवेद व नपुंसकवेद का बन्ध नहीं होता - एक बार समकित में आयु का बन्ध हो जावे तो वह अधिक से अधिक १५ भव (उस भव सहित ) में अवश्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है। जिसने एक बार समकित प्राप्त कर लिया, अगर वह गिरकर मिथ्यात्वी हो भी जावे तो भी उसके अंतः कोटाकोटि सागरोपम से अधिक की स्थिति के कर्मों का बन्ध नहीं होता है ।
समकित वह नींव है, जिसके आधार पर मोक्षरूपी महल का निर्माण किया जा सकता है। समकित मोक्ष रूपी नगर का प्रवेश द्वार है । समकित वह चमत्कार है जिसके फलस्वरूप प्रतिकूल अनुकूल प्रसंगों व परिस्थितियों में जीव समभाव में रह सकता है । सम्यक्त्वी जीव प्रत्येक घटना, प्रसंग - अवस्था को कर्म- निर्जरा का हेतु बनाता है । सम्यक्त्वी को संसार एक मायाजाल जैसा या स्वप्नवत् लगता है । वह संसार में रहते हुये अन्दर से अपने को अलग अनुभव करने लगता है । कहते हैं'सम्यग्दृष्टि जीवड़ा करे कुटुम्ब प्रतिपाल, अन्तरगत न्यारो रहे ज्यों धाय खिलावे बाल ।' समकित प्रत्येक परिस्थिति, अवस्था, प्रसंग आदि के समय अन्दर से सजग, निर्लेप, निरासक्त भाव से रहता है। वह कहीं अटकता - भटकता नहीं है । भगवती आराधना, ७४२ में तो सम्यक्त्व की प्राप्ति तीन लोक के ऐश्वर्य से भी श्रेष्ठ बताई है, 'सम्मद्दंसणलंभो वरं खु तेलोक्कलं भादो' ।'
सम्यक्त्व की प्राप्ति एवं संरक्षण के उपाय
सम्यक्त्व को प्राप्त करने के लिये व प्राप्त - सम्यक्त्व को सुरक्षित रखने के लिये निम्न प्रकार के पुरुषार्थ करने के सुझाव संक्षेप में दिये जा रहे हैं, जो आवश्यक एवं आचरणीय हैं
(१) नित्य निर्दोष सामायिक की आराधना करे । नित्य सत्साहित्य का स्वाध्याय करें, जिसमें अनुप्रेक्षा अवश्य करे ।
(२) सम्यक्त्व की १० रुचियों की आराधना करता रहे। दस रुचियां हैं - निसर्ग रुचि, उपदेश रुचि, आज्ञा रुचि, सूत्र रुचि, बीज रुचि, अभिगम रुचि, विस्तार रुचि, क्रिया रुचि, संक्षेप रुचि और धर्म रुचि ।
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