________________
८७
सम्यग्दर्शन: शास्त्रीय-विवेचन . मिश्र और सम्यक्त्व मोहनीय) के उपशम, क्षय, और क्षयोपशम से क्रमशः उपशम, क्षय
और क्षयोपशम समकित का प्रादुर्भाव होता है। परिणामों की निर्मलता की अपेक्षा उपशम और क्षायिक सम्यक्त्व में सदृशता है, पर उपशम सम्यक्त्व प्रतिपाती है जबकि क्षायिक सम्यक्त्व अप्रतिपाती। क्षयोपशम समकित में उदयगत मिथ्यात्व का क्षय और अनुदय का उपशम (प्रदेशोदय) होने से समकित की निर्मलता में कमी रहती है, क्योंकि इसमें चल, मल, अगाढ दोष होते हैं। कर्मग्रन्थ भाग-१ गाथा-१५ के विवेचन में उपर्युक्त तीन प्रकार के अलावा सास्वादन और वेदक ऐसे दो भेद और हैं। इस प्रकार कुल पाँच प्रकार के सम्यक्त्व हैं। जब जीव उपशम समकित से गिरता है और मिथ्यात्व के धरातल तक नहीं पहुँचता उस बीच जो सम्यक्त्व का अंश होता है वह सास्वादन सम्यक्त्व है। समकित मोहनीय के अन्तिम दलिक का वेदन कर साधक क्षायिक सम्यक्त्वी होता है। अन्तिम दलिक के वेदन को वेदक सम्यक्त्व कहते हैं। इन पाँचों सम्यक्त्व की स्थिति (काल-मर्यादा) इस प्रकार है
१. क्षायिक सम्यक्त्व-सादि अनन्त । २. उपशम सम्बक्त्व-जघन्य उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त
३. क्षयोपशम सम्यक्त्व-जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट छियासठ सागर झाझेरी । । ४. सास्वादन सम्यक्त्व-जघन्य एक समय उत्कृष्ट छह आवलिका।
५. वेदक सम्यक्त्व-एक समय।
उपर्यक्त सम्यक्त्व के पाँच भेदों के अतिरिक्त तीन अन्य प्रकार भी विशेषावश्यकभाष्य गाथा २६७५ में इस प्रकार बतलाये हैं
१. कारक सम्यक्त्व यह सम्यक्त्वी सदनुष्ठानों में स्वयं श्रद्धा और आचरण करता है और दूसरों को प्रेरणा देकर करवाता है।
२. रोचक सम्यक्त्व-यह सम्यक्त्वी स्वयं श्रद्धा करता है, परन्तु तदनुरूप आचरण नहीं करता।
३. दीपक सम्यक्त्व-स्वयं सम्यक्त्वी न होते हुए भी दूसरों को उपदेश देकर श्रद्धा जागृत करता है। ___प्रवचनसारोद्धार-४९ गाथा ९४२ की टीका में सम्यक्त्व के चार प्रकार के दो-दो भेद बतलाये हैं१. द्रव्य सम्यक्त्व-विशुद्ध किये हुए सम्यक्त्व के पुद्गल।
भाव सम्यक्त्व केवलि-प्रज्ञप्त तत्त्वों में आन्तरिक रुचि। २. व्यवहार सम्यक्त्व-सुदेव, सुगुरु और सुधर्म पर विश्वास होना।
निश्चय सम्यक्त्व-तत्त्वों के यथार्थ स्वरूप को समझ कर विपरीत अभिनिवेश रहित आत्म-प्रतीति होना।
३. नैसर्गिक सम्यक्त्व-बिना गुरु आदि के उपदेश के स्वाभाविक क्षयोपशम से तत्त्वों पर श्रद्धा होना।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org