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सम्यक्त्व का स्वरूप और फल
है गौतम चन्द जैन अरिहंतो मह देवो, जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो।
जिणपण्णत्तं तत्तं, इअ सम्मत्तं मए गहियं ।।-आवश्यकसूत्र अर्थ-जीवन पर्यन्त अरिहन्त मेरे देव हैं, सुसाधु गुरु हैं और जिनप्ररूपित ही तत्त्व अर्थात् सार है। यह सम्यक्त्व मेरे द्वारा ग्रहण किया गया है ।
कुष्पवयणपासंडी, सव्वे उम्मग्गपट्टिया।
सम्मग्गं तु जिणक्खायं, एस मग्गे हि उत्तमे ।।-उत्तरा. २३.६३ अर्थ-कुप्रवचन करने वाले पाखण्डी जन सभी उन्मार्ग अर्थात् कुमार्ग की ओर ले जाने वाले हैं। सन्मार्ग तो जिनेश्वर द्वारा कहा गया (बताया गया) मार्ग है। उत्तम पुरुष निश्चित रूप से इस सन्मार्ग पर चलते हैं।
जीवाइ नव पयत्थे, जो जाणइ तस्स होइ सम्मत्ते ।
भावेण सहहन्ते. अयाणमाणेवि सम्मत्तं॥-नवतत्त्वप्रकरण अर्थ-जो जीव आदि नव पदार्थों को जानता है, उसको सम्यक्त्व होता है। जो जीवादि नव पदार्थों को नहीं जानते हुये भी भाव से उन पर श्रद्धा (विश्वास) करते हैं, उनको भी सम्यक्त्व होता है।
सव्वाइं जिणेसरभासिआई, वयणाइं नन्नहा हुंति ।
इअबुद्धि जस्स मणे, सम्मत्तं निच्चलं तस्स ।।-नवतत्त्वप्रकरण अर्थ-जिनेश्वर द्वारा भाषित (कहे गये) सभी वचन अन्यथा (असत्य) नहीं होते हैं-ऐसी बुद्धि जिसके मन में हो जाती है, उसका सम्यक्त्व निश्चल है।
अंतोमुत्तमित्तंपि, फासियं हुज्ज जेहिं सम्मत्तं ।
तेसि अवड्पग्गल-परियट्रोचेव संसारो ।।-नवतत्त्वप्रकरण __ अर्थ-अंतमुहूर्त मात्र भी जिनके द्वारा सम्यक्त्व का स्पर्श कर लिया गया, उनका संसार (भवभ्रमण) अर्द्धपुद्गल परावर्तन काल तक रह जाता है ।
गहिऊण य सम्मत्तं, सुणिम्मलं सुरगिरीव णिक्कंपं
तं झाणे झाइज्जइ सावय ! दुक्खखयट्ठाए ।।-मोक्षपाहुड ८६ अर्थ-हे श्रावक ! सम्यक्त्व को ग्रहण करके दुःखों का क्षय (नष्ट) करने के लिये, उस सुनिर्मल सम्यक्त्व का देवपर्वत के समान अकंपित (अडिग) होकर ध्यान करना चाहिये।
ते धण्णा सुकयत्था, ते सूरा तेवि पंडिया मणुया।
सम्मत्तं सिद्धियरं सिविणे, विण मइलियं जेहिं ।।-मोक्षपाहुड ८९ अर्थ-वे मनुष्य धन्य हैं, सुकृतार्थ अर्थात् कृतकृत्य हैं, वे शूरवीर हैं और वे पण्डित भी हैं, जिनके द्वारा स्वप्न में भी सिद्धि प्रदान करने वाले सम्यक्त्व को मलिन नहीं किया गया।
किं बहुणा भणिएणं, जे सिद्धा णरवरा एगकाले।
सिज्झिहहि जे भविया, तं जाणह सम्मत्तं माहप्पं ॥ अर्थ-अधिक कहने से क्या लाभ? एक समय में जो श्रेष्ठजन सिद्ध हो चुके हैं और जो होने वाले हैं अर्थात् भविष्य में सिद्ध होंगे, वे सम्यक्त्व के माहात्म्य (महिमा) को जानते हैं।
-जिला रसद अधिकारी, बाड़मेर (राज.)
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