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प्रवचन
सम्यग्दर्शन का परीक्षण
बहुश्रुत पं. समर्थमलजी म.सा.
प्रस्तुत प्रवचन में धर्म-दर्शन की सम्यक्ता का परीक्षण ज्ञानवाद, क्रियावाद एवं तत्त्ववाद के आधार पर करते हुए जैन धर्म-दर्शन को सम्यक् दर्शन के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। सम्पादक
सोने की परीक्षा तीन प्रकार से होती है-१. कस, २. छेद और ३ ताप से । कसौटी पर घिसने से मालूम हो जाता है कि यह सोना है या पीतल, असली है या नकली? कसौटी खरे-खोटे का भेद बतलाती है। यह प्रथम विधि है-सोना परखने की। किन्तु कसौटी की परीक्षा ही पर्याप्त नहीं होती। कसौटी तो ऊपर का स्वरूप बतलाती है, भीतर का नहीं। ऊपर थोड़ा सा सोना चढ़ा दिया और भीतर चाँदी या तांबा भरा हो, तो कसौटी उस रहस्य का पता नहीं लगा सकती । इस भेद को पाने के लिए दूसरी 'छेद' परीक्षा है। सूये से सोने में छेद करके भीतर का भेद जाना जाता है। इससे मालूम हो जाता है कि भीतर भी सोना है या कोई दूसरी धातु । यदि धोखा हो, तो मालूम हो जाता है । छेद परीक्षा भी पूरी परीक्षा नहीं है । छेद किसी एक स्थान पर किया जाता है। यदि उस स्थान पर सोना हो और अन्यत्र कछ और भरा हो, तो वह परीक्षा से बच जाता है। इसलिये अन्तिम परीक्षा ताप है। तपाने से पूरे सोने की परीक्षा हो सकती है। फिर धोखे के लिए अवकाश नहीं रहता।
सोने की पूरी परीक्षा की तरह दर्शन की परीक्षा भी तीन तरह से होती है१.ज्ञानवाद से, २. क्रियावाद से और ३. तत्त्ववाद से।
ज्ञानवाद से यह देखना चाहिये कि धर्म के मुख्य अंग–अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की बातें करने वाले, अपनी इन बातों पर कायम हैं, या दूसरों की देखादेखी कहते हैं और कुछ विपरीत भी कहते हैं? देखें कि ज्ञानवाद की कसौटी पर कौन सा दर्शन ठहरता है। ___ एक दर्शन ‘अहिंसा परमो धर्म:' भी कहता है और साथ ही यह भी कहता है कि 'भगवान् ने ये बकरे, मुर्गे, हिरन, खरगोश आदि मनुष्यों के खाने के लिए ही बनाये हैं । ये हमारे लिए भोग्य हैं। इनके मारने-खाने में कोई पाप नहीं।' कोई युद्ध करके म्लेच्छों का संहार करने की प्रेरणा देता है, कोई देव, काफिरों को कत्ल करने का उपदेश करता है। कोई धर्म के लिए झूठ बोलने और विषय वासना में धर्म मानने की बात बतलाते हैं। जो भगवान् की पत्नी और उसके साथ भगवान् का भोग तथा भगवान् के द्रव्यार्पण, भगवान् के चक्र, गदादि अस्त्र-शस्त्र माने, उनकी अहिंसादि पाँच यम की बातें कैसे उपयुक्त हो सकती हैं? कहते है ‘अहिंसा धर्म' भी है और देव को चक्र-गदाधारी भी मानते हैं, ब्रह्मचर्य का उपदेश भी देते हैं और देव के साथ देवी का संयोग भी मानते हैं। कैसा है उनका ज्ञानवाद? इस पहली कसौटी में ही उनका दर्शन नहीं टिक सका। उन दार्शनिकों की यह असत्य बात यदि तर्क के लिए मान ली जाय
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