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सम्यग्दर्शन : शास्त्रीय-विवेचन
निर्वेद
सम्यग्दृष्टि का तीसरा लक्षण यह है कि वह अपने आपको संसार का कैदी समझता है । वह जानता है कि माता, पिता, पुत्र आदि कुटुम्ब-परिवार तथा मकान, धन, सम्पत्ति आदि कुछ भी वास्तव में मेरा नहीं है और मैं उनका नहीं हूं। मैं कर्मोदय के कारण ही इनके बंधन में पड़ा हुआ हूँ।
सम्यग्दृष्टि विवाह करता है तो भी यही समझता है कि मैं जेलखाने में फंस रहा हूँ। सारा संसार एक प्रकार का विशाल जेलखाने के समान है और अज्ञान का अन्धेरा छाया हुआ है। कभी-कभी ज्ञानी गुरु-ज्ञान का थोड़ा-सा प्रकाश फैलाते हैं। अनादिकाल से चले आ रहे मिथ्यात्व की दीवार टूटी है। अतएव सम्यग्दृष्टि, सम्यग्दर्शन पाकर सोचता है कि भाई ! अब यहां से भागने का मौका है। कोई-कोई निकल कर भागे और साध बनने को चले। वहां कटम्बियों ने आकर घेर लिया। कोई रो-रो कर, कोई भय दिखला कर और कोई डांट फटकार बता कर उसे फिर से कैदखाने में बंद करना चाहते हैं। इस विषय का विस्तृत और सुन्दर वर्णन सूत्रकृत्तांगसूत्र में किया गया है। वहां बतलाया गया है
" जइ कालुणियाणि कासिया जइ रोयंति य पुत्तकारणा।
दवियं भिक्खू समुट्टियं, णो लब्भंति ण संठवित्तए॥ अर्थात्-गृह-त्याग कर नवीन बने हुए साधु के माता-पिता आदि संबंधी जैन साधु के समीप आकर यदि करुणाजनक वचन कहें, करुणाजनक कार्य करें या अपने पुत्र के लिए रोदन करें तो भी संयम-पालन में उद्यत, और मुक्तिगमन के योग्य उस साधु को वे संयम से भ्रष्ट नहीं कर सकते और वे उसे फिर गृहस्थलिंग में नहीं जा सकते।
कुटम्बीजन मानो समझते हैं कि यह हमारा साथ छोड़ कर कहीं मोक्ष में चला जाएगा तो नरक में हमारा साथ कौन देगा? ___ एक नदी पूर जा रही थी। उसमें एक काली-काली सी दिखलाई देने वाली चीज बहती जा रही थी। किनारे पर खड़े लोगों की उस पर दृष्टि पड़ी। उन्हें जान पड़ा कि या तो यह कंबल है या माल की कोई पेटी है। एक आदमी हिम्मत करके नदी में कूद गया और उसके पास पहुंचा। देखा काली चीज तो रीछ है। रीछ ने उस आदमी का सहारा लेना चाहा, अतएव वह उस पर लपका। कभी आदमी नीचे और कभी रीछ नीचे आता गया । किनारे खड़े लोगों ने उसे पुकारा–अरे, छोड़ दे उसे और तैर कर आजा। किन्तु वह कहता है-मैं छूट नहीं सकता। आना चाहता हूँ परन्तु आ नहीं सकता।
यही हाल इस संसार का है। इसमें धन-दौलत, कुटम्ब-परिवार आदि का जब तक सच्चा स्वरूप मालूम नहीं होता, तब तक वे लुभावने मालूम पड़ते हैं और जब उनकी असलियत का पता चल जाता है तब वे रीछ के समान भयानक जान पड़ते हैं। जो लोग संसार में फंस जाते हैं वे निकलना चाहते हुए भी निकल नहीं पाते और ऐसे फंसे रहते हैं कि दो घड़ी सामायिक करना भी छूट जाता है। मुनिराज कहते हैं कि छोड़ दे , मगर वह कहता है छूटता ही नहीं है। लेकिन कम्बल लेने को चले और रीछ से पाला पड़ा। संसारी जीव अज्ञान के वशीभूत होकर सुख प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं और दुःख पल्ले पड़ता है। वे जिन वस्तुओं के सुख की कल्पना करते
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