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सम्यग्दर्शन : शास्त्रीय-विवेचन गले पड़ जाती हैं। इसलिए सम्यग्दर्शन को निर्मल बनाये रखने की पूरी आवश्यकता
तत्त्ववाद के विषय में अन्यदर्शन में अनेक प्रकार की गड़बड़ियाँ हैं। कई दर्शन 'ईश्वर कर्तृत्ववादी' हैं। वे कहते हैं कि-'जैसी भगवान की इच्छा होगी वैसा करेंगे, हमारे किये क्या हो सकता है? करने-धरने वाला तो वही है।' उनके ऐसा कहने का मतलब तो यह हुआ कि ईश्वर ही किसी को जीवित रखता या मारता है, हँसाता-रुलाता है और स्वर्ग या नरक में भेजता है। किन्तु ये सभी बातें झूठी हैं। मनुष्य अपने खोटे कार्यों का भार भी ईश्वर पर डाल देता है। इस प्रकार ईश्वर-कर्तृत्ववादी दर्शन, अपने आत्मवाद से तीसरी कसौटी पर भी अनुत्तीर्ण रहते हैं। ___ अपना दोष भगवान् के सिर मढ़ने के विषय में एक दृष्टांत है। गाँवडे की एक बाई प्रातःकाल जल्दी ही उठ कर गोबर का संग्रह करती थी। वह अपने इस कार्य में शीघ्रता करती थी। वह सोचती थी कि–'यदि मैंने देर की तो कोई दूसरी स्त्री गोबर उठा लेगी और मैं वंचित रह जाऊँगी।' वह मुँह अन्धेरे निकल जाती। वह सूर्य-उपासिका थी। गोबर चुनकर घर लौटते समय सूर्य उदय हो जाता और उदित सूर्य को देखते ही वह हाथ जोड़कर नमस्कार करती। एक दिन अन्धेरे में गोबर उठाते, उसके पास मनुष्य का गोबर (विष्ठा) पड़ा था। वह भी उठा कर टोकरे में डाल लिया और आगे बढ़ी। थोड़ी देर में सूर्य उदय हुआ। उस बाई ने तत्काल टोकरा नीचे रखा और दोनों हाथ जोड़ कर आँखें मूंदते हुए सूर्य को प्रणाम किया। उसके हाथ ज्योंही नाक के पास आये कि विष्ठा की गन्ध नाक में धुसी। महिला को आश्चर्य हुआ। उसने कहा___ हे सूर्यनारायण ! रोज जो तू गोबर में उदय होता था, आज विष्ठा में क्यों उदय हुआ?'
सज्जनों! यह उस बाई का दोष है, या सूर्य के उदय होने का? दृष्टि-विकार से लोग अपना दोष भी दूसरों पर डाल देते हैं। ___ रुपये-पैसे, चाँदी-सोना या हीरा-जवाहरात की परीक्षा नहीं हो और हानि हो जाय, तो वह इस जीवन तक ही रहती है, परन्तु बुद्धि की विकृति बहुत बुरी होती है। पौद्गलिक सम्पत्ति साथ नहीं आती, घर में रहती है। किन्तु बुद्धि तो घर, बाहर, वन, विदेश और सर्वत्र साथ रहती है। बुद्धि-विकार हटा कर आत्मा के दर्शन गुण को निर्मल बनाने से आत्मा पवित्र होती है और परम्परा से परमात्म-पद प्राप्त कर लेती है। आप भी अपने सम्यग्दर्शन को सुरक्षित रखकर दृढ़तम बनाते जाइए और क्षायिक-सम्यक्त्व प्राप्त कर अजर-अमर बन जाइए।
('शिविर व्याख्यान' से साभार)
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