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(२) जैनतत्त्वमीमांसा के लेखन
में
पं० फूलचन्द्र जी की दृष्टि !
जैनतत्त्वमीमासा प्रारम्भ करने से पूर्व मुझे यह आवश्यक प्रतीत होता है कि तत्त्वमीमांसा के लेखन में निहित पं० फूलचन्द्र जी की दृष्टि को समझ लिया जाय अतः सर्वप्रथम प० जी की दृष्टि को ही यहाँ तत्त्वमीमांसा के आधार पर निबद्ध किया जा रहा है ।
(१) क - वस्तु मे प्रतिक्षण यथायोग्य स्वभाव अथवा विभावरूप जो भी परिणमन हो रहा है वह सब परनिरपेक्ष केवल वस्तु के स्वत सिद्ध परिणमन स्वभाव के बल पर ही हो रहा है । यद्यपि वस्तु का परिणमन स्वभाव स्वत सिद्ध होने से अनादि है, परन्तु उसके आधार पर होने वाला कोई भी परिणमन तभी होता है जब वह वस्तु उस परिणमन से अव्यवहित पूर्वक्षणवर्ती परिणमन मे पहुँच जाती है |
तात्पर्य यह है कि प्रत्येक वस्तु मे उसकी त्रिकालवर्ती समस्त पर्याये ( परिणमन) अनादिकाल से शक्ति ( अव्यक्त ) रूप मे विद्यमान हैं इसे उपादान शक्ति कहते है । इस तरह प्रत्येक वस्तु मे उसकी अपनी उक्त सपूर्ण पर्यायो की उपादानता