Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Mimansa
Author(s): Bansidhar Pandit
Publisher: Digambar Jain Sanskruti Sevak Samaj

View full book text
Previous | Next

Page 351
________________ -- पूर्व मे आत्मा की क्रियावती शक्ति की मानसिक, वाचनिक और कायिक क्रिया रूप योग के शुभ व अशुभ दो भेद और उनके लक्षण बतलाते हुए मैं कह आया हूँ कि यदि शुभ योग यथासम्भव कषायो के उदय से अनुरजित होने के आधार पर रागात्मक और द्वषात्मक मानसिक, वाचनिक और कायिक प्रवृत्ति (पुरुषार्थ) रूप हो तो उसका नाम पुण्याचरण है व यदि अशुभयोग यथासम्भव कपायो के उदय से अनुरजित होने के आधार पर रागात्मक और द्वषात्मक मानसिक, वाचनिक और कायिक प्रवृत्ति (पुरुषार्थ) रूप हो तो उसका नाम पापाचरण है। इनमे से पापाचरण दो प्रकार का होता है-एक तो सकल्पी पाप रूप और दूसरा आरम्भी पाप रूप । सकल्पी पाप रूप पापाचरण अनन्तानुबन्धी कषाय के उदय मे होता है और आरम्भी पाप रूप पापाचरण अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और सज्वलन कषायो के उदय मे होता है। इस तरह प्रथम और द्वितीय गुणस्थानो मे तो अप्रत्याख्यानावरणादि तीनो कषायो के साथ अनन्तानुबन्धी कपाय का भी उदय रहा करता है अत. इन गुणस्थानो मे रहने वाला जीव अविरत तथा उच्छ जल प्रवृति वाला होता है लेकिन तृतीय गुणस्थान मे अनन्तानुबन्धी कषाय का उदय न रहने के कारण जीव उच्छ.डल प्रवृति वाला तो नही होता फिर भी अप्रत्याख्यानावरणादि तीन कषायो का उदय रहने के आधार पर अविरत सम्यग्मिथ्यादृष्टि हुआ करता है। इसी तरह चतुर्थ गुणस्थान मे दर्शनमोहनीयकर्म के उपशम, क्षय अथवा क्षयोपशम के साथ अनन्तानुबन्धी कषाय का भी उपशम या क्षय अथवा क्षय और उपशम दोनो रहने के कारण जीव उच्छ, सल प्रवृत्ति वाला न होता हुआ अप्रत्याख्यानावरणादि कषायो का उदय रहने के

Loading...

Page Navigation
1 ... 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421