Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Mimansa
Author(s): Bansidhar Pandit
Publisher: Digambar Jain Sanskruti Sevak Samaj

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Page 364
________________ ३२८ अवाम्बाविक गम्यग्दर्शन, बहिरनम्यादान और उपग्नि सम्यग्दगंन आदि नामो गे, आगमज्ञान को व्यवहार गम्यग्ज्ञान, अपरमायं सम्यग्नान, अयथार्थ मम्मम्मान, अगत्यायं सम्यग्ज्ञान, अभूतायंगम्यमान, अवास्तविक सम्यग्जान, हिरन सभ्यग्नान और उपनरित मम्मम्मान आदि नामो गे तथा अगुव्रत-महात आदि को व्यवहार गम्याचारिय, अपरमाव सम्यकचारिम, अयथार्य सम्पानारित्र, असत्यार्थ सम्यकनारिन, अभूतार्थ नम्याचारिम, अवास्तविक सम्यकचारित्र, बहिरङ्ग मम्यक् नारिय और उपनरित सम्याचारिय आदि नामो मे इसलिये पुकारते है नि तत्त्वाय श्रद्धान, आगमज्ञान और अरगुयन-महादत आदि मे एक ओर तो मोक्ष की मातात् कारणतारूप मुग्यायंता का अभाव है व दूसरी ओर मोक्ष के माक्षान् कारणभून और पूर्वोक्त निश्चय सम्यग्दर्शन, परमार्य सम्यग्दर्शन, यथार्थ सम्पग्दर्शन, सत्यार्थ सम्यग्दर्शन, भूतार्य सम्यग्दर्शन, वास्तविक मम्यग्दर्शन, अन्तरङ्गसम्यग्दर्शन और मुख्य सम्यरदर्शन आदि नामो से पुकारे जाने वाले आत्म कल्याण की रुचि जागत होने रूप सम्यग्दर्शन मे तत्त्वार्य श्रद्धान कारण होता है, इसी तरह मोक्ष के साक्षात् कारणभूत और पूर्वोक्त निश्चय सम्यग्ज्ञान, परमार्य मम्यग्नान, यथार्थसम्यग्ज्ञान, सत्यार्थसम्यरजान, भूतार्थ सम्यग्ज्ञान, वास्तविक सम्यग्ज्ञान, अतरगसम्परज्ञान और मुस्य सम्यग्ज्ञान आदि नामो से पुकारे जाने वाले आत्मज्ञानरूप मम्यग्ज्ञान मे आगमज्ञान कारण होता है तथा इसी तरह मोक्ष के साक्षात् कारणभूत और निश्चय सम्यक चारित्र, परमार्थ सम्यक्चारित्र, यथार्थ सम्यक्चारित्र, सत्यार्थ सम्यक्चारित्र, भूतार्थ सम्यक्चारित्र, वास्तविक सम्यक्चारित्र, अन्तरग सम्यक्वारित्र और मुख्य

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