Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Mimansa
Author(s): Bansidhar Pandit
Publisher: Digambar Jain Sanskruti Sevak Samaj

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Page 415
________________ ३७६ पृष्ठ पक्ति १०८ ६ ११० १३-१४ २३ १११ ११४ १५ ११७ ११७ १७ १२२ १४ १२५ १२५ अशुद्धि यही यहा । जीव पुद्गल जीव और पुद्गल अभव्यतत्व अभव्यत्व सम्यग्दर्शन प्राप्ति सम्यग्दर्शन की प्राप्ति विरोध्वत् विरोधात् शुद्धिभाजायात्मना शुद्धि भाजामात्मना सादि है व्यक्ति सादि है यार तत्र्यस्यानु- पार तत्र्यस्यानुभवात् भावात् अशुद्ध शक्ति अशुद्धि शक्ति दृष्टान्त दार्टान्त दृष्टान्त के साथ दान्ति के साथ दृष्टान्त के साथ दार्टान्त के साथ योगान्तिश्चयिते योगान्निश्चीयते प्रत्येक जीवो प्रत्येक जीव बद्धस्पृष्ट अवद्ध बद्ध स्पृष्ट और अबद्ध स्पृष्ट स्पृष्ट बद्ध समाप्त बद्ध स्थिति समाप्त पारिणामको पारिणामिको अधिक आवश्यक अत्यन्त आवश्यक नोकर्म परिणत नोकर्म रूप परिणत गाथा ८६ गाथा ८० नियत रूप रूप से नियत रूप से रूप मे छोडकर रूप को छोडकर १२५ १२५ १२६ १३० १३१ १३४ १३५ २२ ર૪ १४ १८

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