Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Mimansa
Author(s): Bansidhar Pandit
Publisher: Digambar Jain Sanskruti Sevak Samaj

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Page 418
________________ ३८२ पृष्ठ २२१ पक्ति २५ २२४ ७ २२८ २४ २२६ ५ २३३ ७ २३४ ११ २३४ १६ २३७ १२-१३ २३७ २२-२३ २० ५ २३८ २४३ २५७ १६ २६३ २ २-३ ११ २६४ १६-१७ अशुद्धि पापाचरण व्यवहार हेतु को बनाकर जीव केवलज्ञान शुद्धि पापाचरण रूप व्यवहार प्रसत्त प्रसक्त हो जाती है कार्माणि वर्गणा कार्मण वर्गणा रूप हो जाती हो हेतु बनाकर जीव के केवल ज्ञान रूप कार्माण वर्गणा मे कार्माण वर्गणायें ते सयमपरिणमते ते सयमपरिणमते कह गु कह तु परिणाम परिणामयदि चेदा || गा० यदि पाणी । गा० १९१८ का उत्त० 1 १२८ का उत्तरार्ध कार्य कर्तव्य घटरूप युक्त द्रव्य इस बात मे कि निरपेक्ष पर निर १२५ का उत्तरार्ध त सयमपरिणमत त सयम परिणमत कह गु कह परिणामऐदि परणामयदि कोहो । गा० || To १२३ का उत्तरार्ध ॥ पेक्ष पैदा ही नही होता है कार्यकर्तृत्व पटरूप युक्त' इस वात मे है कि निरपेक्ष, परनिरपेक्ष पैदा होता है

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