Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Mimansa
Author(s): Bansidhar Pandit
Publisher: Digambar Jain Sanskruti Sevak Samaj

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Page 420
________________ ३८४ शुद्धि अर्थात् २५ पृष्ठ पक्ति अशुद्धि ३२४ अनुचरित अनुपचरित ३२५ २४ लात् जसे जैसे ३२६ २१ उपचरित अर्थ उपचरित अर्थ के ३३४ बरिरग कर्तृत्व वहिरग कर्तृत्व जैसे व्यवहार रल- जिसे व्यवहार रत्नत्रय प्रय ૩૩૭ ૨૨ अन्नक अन्न के प्रतिपादन करके प्रतिपादन न फरक वह पर यह बात दूमरी यह बात दूगरी है ३५० कुम्भ कर्तव्य पुम्भ पल ३६० सहायास्तहशः महापास्ताहमा ३६४ २४ केवल उनकी फेवन इतनी corrzzear-मेरा कहना यह मेग पहना यह है

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