Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Mimansa
Author(s): Bansidhar Pandit
Publisher: Digambar Jain Sanskruti Sevak Samaj

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Page 412
________________ पृष्ठ पति २१ ८,६१० २३ स urm ar 0 गुदि सोना होता है आदि नौकिक वो "साहनी जायते बुद्धि सानहाग लगा है। वायस ताहरा । "तापो जानते बुद्धि महायान्ताहमा मन्तिः सामस ताम: गाहमी गावितव्यता।" सहायान्तारमा मन्ति मारिलोफिन पदो का पाहणी भवितव्य- सहारा लिया है। तो ॥" हो जाते हैं। होते जाते है। अपेक्षा अपेक्षित हो सहायता उपेक्षित हो गुयकान्तमणि मूर्यकान्तमणि बत. मिद्धय स्वन. सिद्धम् गन्यानियत सन्या नियत परस्पेणापरिणमवाद परस्पेण परिणम नाद वरत्वस्ति वस्त्वस्ति एव न एति एव च सति घट मोलिनवार्यों घटमौलि सुवार्थी भेद कारण भेद का कारण यकपने ज्ञायकपने दृष्टान्त दान्ति कारण निमित्त प्रधान यथावश्यक निमित्त प्रधान गुण विषादो ॥ ३७७ ॥ ॥ ३७२।। अकित्करता अकिंचित्करता (1) ७. G८८.० AT १४ ४० ४२ ४६ ११ ".2 ५८ ५६ __५ २४ २५ १६ गुणु प्याओ

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