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उन्होने यह बात भी मान्य की है कि प्राणियो की अर्थ सिद्धि दैव और पुरुषार्थ दोनो कारणो के परस्पर सहयोग से ही हुआ करती है।
___ अर्थ सिद्धि के विषय मे इसके अतिरिक्त परस्पर विलक्षण विविध प्रकार की ऐकान्तिक मान्यताये भी लोक मे प्रचलित हैं जो निम्न प्रकार है
कोई दर्शन प्राणियो की अर्थ सिद्धि पुरुषार्थ के विना केवल देव से ही मानता है। इसके विपरीत कोई दर्शन यह कहता है कि प्राणियो की अर्थ सिद्धि देव के बिना केवल पुरुपार्थ से ही हो जाया करती है। यही नही, कोई दर्शन यह भी कहता है कि प्राणियो की कोई अर्थ सिद्धि तो पुरुषार्थ-विहीन केवल देव से होती है और कोई अर्थ सिद्धि दैवविहीन केवल पुरुषार्थ से होती है । एक चौथा दर्शन भी लोक मे पाया जाता है जो कहता है कि प्राणियो की अर्थ सिद्धि न तो केवल देव से होती है, न केवल पुरुषार्थ से होती है और न पृथक्-पृथक् अथवा सयुक्त रूप से देव और पुरुषार्थ दोनो से होती है-इस तरह अर्थ सिद्धि के विषय मे कारणता की दृष्टि से अवक्तव्य विकल्प को छोड कर अन्य कोई विकल्प उसके मत मे स्वीकृत करने योग्य नही है।
इन सब अथवा इसी तरह के ऐकान्तिक पक्षो के प्रति अनास्था प्रगट करते हुये आप्त मीमासा की ८८ से ११ तक की कारिकाओ द्वारा स्वामो समन्तभद्र ने यह सिद्ध किया है कि प्राणियो की अर्थ सिद्धि न केवल देव से होती है, न केवल पुरुषार्थ से होती है और न पृथक्-पृथक् देव और पुरुषार्थ से ही होतो है