Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Mimansa
Author(s): Bansidhar Pandit
Publisher: Digambar Jain Sanskruti Sevak Samaj

View full book text
Previous | Next

Page 409
________________ ३७३ मनुष्य जैसा चाहता है वैसा ही कार्य नियम से होना चाहिये, इस तरह "मनुष्य चाहता तो कुछ और है और कार्य कुछ होता है" यह स्थिति कदापि नही होनी चाहिये। एक और भी अर्थ "तादृशी जायते बुद्धि" इत्यादि पद्य का किया जा सकता है, वह यह है कि जिस कार्य के अनुकूल वस्तु मे भवितव्यता (उपादान शक्ति) विद्यमान रहती है उस वस्तु से समझदार व्यक्ति उसी कार्य के उत्पन्न करने की बुद्धि (भावना) करता है और वह पुरुपार्थ भी तदनुकूल ही करता है तथा वहाँ पर तदनुकूल सहायक साधनो का उपयोग होता है। इस तरह पद्य का यदि ऐसा अभिप्राय निकाला जाय तो भी जैन-दर्शन की मान्यता के साथ इसका विरोध नही रह जाता है। तात्पर्य यह है कि उक्त पद्य का जो भी अर्थ किया जाय उससे प० फूलचन्द्र जी का यह मत पुष्ट नही होता है कि "भवितव्यता (उपादान शक्ति) से ही कार्य उत्पन्न होता है, निमित्त वहाँ अकिंचित्कर ही रहा करते है।" इस प्रकार कार्य के प्रति निमित्तो की सार्थकता" नामक इस प्रकरण मे मैंने अनुभव, इन्द्रियप्रत्यक्ष, तर्क और यथावश्यक आगम के प्रमाणो द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि कार्योत्पत्ति के लिये जिस प्रकार वस्तु की निजी योग्यता आवश्यक है उसी प्रकार यदि वह कार्य स्वपरप्रत्यय हो तो वहा सहायक होने रूप से निमित्त सामग्री की भी आवश्यकता है। अर्थात् प्रत्येक स्वपरप्रत्यय कार्य प्रत्येक वस्तु मे उसमे विद्यमान निजी उपादान शक्ति तथा अनुकूल निमित्त

Loading...

Page Navigation
1 ... 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421