Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Mimansa
Author(s): Bansidhar Pandit
Publisher: Digambar Jain Sanskruti Sevak Samaj

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Page 391
________________ ३५५ गोम्मटसार कर्मकाण्ड मे क्रियावादी मिथ्या दृष्टियो की गणना करते हुए आचार्य श्री नेमिचन्द्र ने काल, ईश्वर, आत्मा, नियति और स्वभाव इनमे से एक-एक आधार से कार्योत्पत्ति मानने वाले मिथ्यादृष्टियो का कथन किया है। इस पर से प० फलचन्द्र जी द्वारा यह सिद्धान्त स्थिर किया गया मालूम होता है कि यदि ईश्वर आदि पाँच मे से एक-एक से कार्योत्पत्ति मानने वाले मिथ्यादृष्टि है तो इनके समवाय से कार्योत्पत्ति मानने का सिद्धान्त सत्य है क्योंकि उन्होने उक्त स्वभाव आदि के समवाय को कार्योत्पत्ति मे कारण माना है और च कि जैनदर्शन मे ईश्वर को कर्ता नही माना गया है अत उन्होने ईश्वर के स्थान पर कर्म को कारण मानकर उसका अर्थ निमित्त कर दिया है तथा आत्मा समस्त वस्तुओ के समस्त परिणमनो मे जैन-दर्शन के अनुसार कारण नही होता है अत: उसके स्थान पर पुरुषार्थ को कारण मानकर उसका अथ प्रत्येक वस्तु का बल-वोर्य कर दिया है, परन्तु एक तो मैं पूर्व मे वतला चुका हूँ कि वस्तु के स्वप्रत्यय परिणमनो मे निमित्त की कारणता अपेक्षित नही रहा करती है, दूसरे अब मैं यह भी बतला देना चाहता हूँ कि प० फूलचन्द्र जी कर्म का अर्थ भले ही निमित्त मान लें व पुरुषार्थ का अर्थ भी वस्तु का बल-वीर्य मान ले, तो भी प० प्रवर बनारसी दास जी के "पद स्वभाव पूरव उदै निहचै उद्यम फाल । पच्छपात मिथ्यात तज सरवगी शिव चाल ॥" इस पद्य मे पठित "पूरव उदै" शब्द का वे सामान्य रूप मे निमित्त अर्थ कैसे करेगे ? इसी तरह उद्यम भी चित्शक्ति

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