Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Mimansa
Author(s): Bansidhar Pandit
Publisher: Digambar Jain Sanskruti Sevak Samaj

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Page 389
________________ ३५३ कार्य की पाँचो के दूसरे कथन के प्रसंग में आगे वही पर वे गोम्मटसार कर्मकाण्ड के आधार का उल्लेख करते हुए यह भी कह रहे हैं कि जो व्यक्ति इन पाँचो कारणो में से किसी एक से ही उत्पत्ति मानता है वह मिथ्यादृष्टि है और जो इन समवाय से कार्योत्पत्ति मानता है वह सम्यग्दृष्टि है । अपने इस कथन मे पं० जी ने कार्योत्पत्ति मे जिन स्वभाव आदि पाँच के समवाय को कारण माना है उनमे पठित कर्म शब्द का अर्थ भी उन्होने निमित्त क्रिया है । जैसे वे लिखते है कि "यहाँ स्वभाव से द्रव्य की स्वशक्ति या नित्य उपादान लिया गया है, पुरुषार्थ से उसका बल-वीर्य लिया गया है, काल से स्वकाल का ग्रहण किया है, नियति से समर्थ उपादान या निश्चय की मुख्यता बतलाई गई है और कर्म से निमित्त का ग्रहण किया है ।" ( जैनतत्त्वमीमासा पृष्ठ ६५) इस तरह देखने में आ रहा है कि - एक जगह निमित्तो को कार्य सिद्धि मे अकिचित्कर मानते हुए भी दूसरी जगह प० फूलचन्द्र जी कार्य सिद्धि के प्रति उन्ही निमित्तो की अनिवार्य कारणता को आप स्वयं स्वीकार कर रहे हैं । प० जी ने कार्योत्पत्ति मे निमित्तों की अकिचित्करता के विषय मे जैनतत्त्वमीमासा मे जो कुछ लिखा है उसकी मीमासा पूर्व मे विस्तार के साथ की जा चुकी है, इसलिये इस विषय मे कुछ न लिखकर यहाँ पर मैं यह कहना चाहता हूँ कि कार्य की उत्पत्ति मे प० जी ने जो को कारण माना है उनकी साधारणतया कोई विरोध यह है कि सभी कार्यो की स्वभाव आदि पाँच के समवाय इस मान्यता के विषय मे तो मेरा नही है, फिर भी जो विरोध है वह उत्पत्ति मे प० फूलचन्द्र जी द्वारा

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