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यह है कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता नही होता, यह एकान्त नियम नही है । अर्थात् एक द्रव्य दूसरे द्रव्यका कर्ता नही होतायह भी सत्य है और एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता होता है - यह भी सत्य है | इतनी बात अवश्य है कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता नही होता - यह कथन तो निश्चय कर्तृत्व, परमार्थ कर्तृत्व, यथार्थ कर्तृत्व, सत्यार्थ कर्तृत्व, भूतार्थ कर्तृत्व, वास्तविक कर्तृत्व, अन्तरग कर्तृत्व व मुख्य कर्तृत्व रूप उपादान कर्तृत्व
दृष्टि से सत्य है क्योकि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य रूप त्रिकाल मे कभी परिणत नही होता है तथा एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता होता है- यह कथन व्यवहार कर्तृत्व, अपरमार्थ कर्तृत्व, अयथार्थ कर्तृत्व, असत्यार्थ कर्तृत्व, अभूतार्थ कर्तृत्व, अवास्तविक कर्तृत्व, बहिरग कर्तृत्व व उपचरित कर्तृत्व रूप निमित्त कर्तृत्व की
सत्य है क्योकि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य के कार्य रूप परिणत होने मे आवश्यकतानुसार सहायक अवश्य होता है । जैसे मिट्टी मे जिस प्रकार कुम्भ निर्माण का कर्तृत्व विद्यमान है उसी प्रकार कुम्भकार व्यक्ति मे भी कुम्भ निर्माण का कर्तृत्व विद्यमान है, परन्तु दोनो मे अन्तर यह है कि मिट्टी कुम्भ की कर्ता इस दृष्टि से है कि वह कुम्भ रूप परिणत होती है और कुम्भकार व्यक्ति कुम्भ का कर्ता इस दृष्टि से है कि वह मिट्टी के कुम्भ रूप परिणत होने में सहायक होता है ।
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प० फूलचन्द्रजी आदि कहते हैं कि " कुम्भकार व्यक्ति मे कुम्भ निर्माण का सहायक होने रूप कर्तृत्व भी विद्यमान नही केवल उसे (कुम्भकार व्यक्ति को ) कुम्भ निर्माण का कर्ता कहा मात्र जाता है । अर्थात् मिट्टी स्वय ( अपने आप ) ही स्वकाल आने पर कुम्भ रूप परिणत हो जाया करती है कुम्भ