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हैं । जैसे "अन्न' वै प्राणा" यहाँ पर अन्न का प्राणरूप जो उपचरित अर्थ है वह अन्न मे प्राण सरक्षण की कारणता का सद्भाव रहने के आधार पर है, कुम्भकार शब्द का कुम्भनिर्माण कर्तृत्व रूप जो उपचरित अर्थ है वह कुम्भ निर्माण में, मिट्टी का सहायक होने के आधार पर है, यही व्ययस्था अध्यापक, पाचक (रसोइया) आदि शब्दो के उपचरित अर्थ के विषय मे भी समझ लेना चाहिये । इसी प्रकार व्यवहार रत्नत्रय, व्यवहार धर्म और व्यवहार मोक्ष मार्ग शब्दो से कहे जाने वाले व्यवहार-सम्यग्दर्शनादि का मोक्ष कारणता रूप जो उपचरित उपचरित अर्थ हैं वह परम्परया कारण होने के आधार पर है और इसी प्रकार "ओ लकडी" व "ओ तागा" आदि स्थलो मे लकडी शब्द का लकडीवाला व ताँगा शब्द का तागावाला रूप जो उपचरित अर्थ है वह आधाराधेयभाव व स्वस्वामिभाव आदि सम्बन्धो के आधार पर है । यही बात "गगाया घोष. ", "मश्वा क्रोशन्ति" और 'धनुर्धाति" आदि स्थलो मे भी जान लेना चाहिये । अर्थात् 'गगाया घोष " यहाँ पर गङ्गा शब्द का गङ्गा तट रूप उपचरित अर्थ गङ्गा और घोष मे विद्यमान समीपतारूप सम्बन्ध के आधार पर है, "मचा क्रोशन्ति" यहाँ पर मञ्च शब्द का मञ्चस्थ पुरुष रूप उपचरित अर्थ मच और पुरुष मैं विद्यमान आधाराधेयभाव सम्बन्ध के आधार पर है और "धनुर्धावति" यहाँ पर धनुर् शब्द का धनुर्धारी रूप उपवरित अर्थ धनुर् और पुरुष मे विद्यमान सयोग सम्बन्ध के आधार पर है । इन सब स्थलो मे निमित्तो के आधार पर उपचरित अर्थ का स्पष्टीकरण किया है इसी तरह प्रयोजन के आधार पर उपचरित अर्थ का स्पष्टीकरण यथासम्भव इन्ही स्थलो मे तथा अन्य स्थलो में भी समझ लेना चाहिये ।