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३२३ उनके सपेक्षीजनो का व्यवहार रत्नत्रय, व्यवहार धर्म या व्यवहार मोक्षमार्ग को अकिंचित्कर रूप मे व्यवहार, अपरमार्थ, अयथार्थ, असत्यार्थ, अभूतार्थ, अवास्तविक, बहिरग, और उपचरित आदि नामो से तथा निमित्तकारण को भी अकिंचित्कररूप मे निमित्त, व्यवहार, अपरमार्थ, अयथार्थ, असत्यार्थ, अभूतार्थ, अवास्तविक, बहिरग और उपचरित आदि नामो से पुकारना मिथ्या है।
वास्तविक बात यह है कि प० फूलचन्द्र जी, प० जगन्मोहनलाल जी और उनके सपक्षीजनो को निमित्त, व्यवहार, अपरमार्थ, अयथार्थ, असत्यार्थ, अभूतार्थ, अवास्तविक, बहिरग और उपचरित आदि शब्दो का अर्थ समझने मे भ्रम उत्पन्न हो गया है जिसके कारण हो उन्हे व्यवहाररत्नत्रय, व्यवहार धम या व्यवहार मोक्षमार्ग को मोक्षरूप कार्य की उत्पत्ति मे तथा निमित्त कारण को उपादान की परिणतिरूप कार्य की उत्पत्ति मे अकिचित्कर मानने के अतिरिक्त कोई चारा ही नही रह गया है।
यहा इतना ध्यान रखना चाहिये कि निश्चय रत्नत्रय, निश्चय धर्म या निश्चय मोक्षमार्ग मे निश्चय, परमार्थ, यथार्थ, सत्यार्थ, भूतार्थ, वास्तविक, अन्तरग और मुख्य आदि शब्द एकार्थक शब्द है तथा व्यवहाररत्नत्रय, व्यवहार धर्म या व्यवहार मोक्षमार्ग मे व्यवहार, अपरमार्थ, अयथार्थ, असत्यार्थ, अभूतार्थ, अवास्तविक, बहिरग और उपचरित आदि शब्द भी एकार्थक है। इसी तरह उपादान कारण मे भी उपादान निश्चय, परमार्थ, यथार्थ, सत्यार्थ, भूतार्थ, वास्तविक, अन्त रग और मुख्य आदि शब्द एकार्थक हैं तथा निमित्तकारण मे भी निमित्त, व्यवहार, अपरमार्थ, अयथार्थ, असत्यार्थ, अभूतार्थ अवास्तविक