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हो परन्तु परिणमित होने वाली वस्तु को परिणमित होने मे सहायक अवश्य हो अर्थात् जिसकी सहायता के विना परिणमित होने वाली वस्तु परिणमित न हो वह 'पर' कहलाता है इसे निमित्त अर्थात् सहायक कारण भी कहते है । इसकी अपेक्षा स्वपरसापेक्ष परिणमन मे ही रहा करती है स्वसापेक्ष परनिरपेक्ष परिणमन मे नही ।
स्वसापेक्षपरनिरपेक्ष और स्वपरसापेक्ष परिणमनो में भेद कारण
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ऊपर के कथन से यह वात स्पष्ट हो जाती है कि स्वसापेक्षपरनिरपेक्ष और स्वपरसापेक्ष दोनो परिणमनो मे भेद का कारण उस उस परिणमन मे पायी जाने वाली परनिरपेक्षता और परसापेक्षता ही है क्योकि परिणमन के प्रतिनियत रहने ( स्वभाव की परिधि मे होने) के कारण स्व की अपेक्षा तो दोनो परिणमनो मे समान रूप से रहा करती है इससे यह भी निष्कर्ष निकला कि वस्तु मे अथवा वस्तु के स्वभाव मे कोई परिणमन स्व की अपेक्षारहित केवल परसापेक्ष नही होता है । अर्थात् वस्तु मे अथवा वस्तु के स्वभाव मे जिस प्रकार के परिणमन की योग्यता विद्यमान नही है उस प्रकार का परिणमन वस्तु मे अथवा वस्तु के स्वभाव मे केवल पर के बल पर त्रिकाल मे कभी भी नही हो सकता है । यही कारण है कि आगम मे स्वनिरपेक्षपरसापेक्ष परिणमन का विधान नही पाया जाता है प्रत्युत स्वनिरपेक्षपरसापेक्ष परिणमन का आगम मे दृढता के साथ निषेव ही किया गया है । इस सम्बन्ध मे समयसार की ११६ से १२० तक की व १२१ से १२५ तक की गाथाओ तथा गाथा १०३ का गहराई के साथ अवलोकन करना चाहिये ।